डॉ.कैलाश 'कमल'ग्वालियर के साहित्याकाश में उदित हुआ ऐसा जाज्वल्यमान नक्षत्र है जिसके प्रकाश से समूचा जैन जगत आलोकित रहा है |उनके लिखे आध्यात्मिक पद और भक्ति गीत के मधुर स्वर प्रायः सभी जैन तीर्थों में गुंजरित होते हैं |ग्वालियर के प्रतिष्ठित वैद्य कविराज श्रीलाल जैन के सुपुत्र डॉ. कैलाश 'कमल'का जन्म ई.30-08-1925 में हुआ |आपने हिंदी के अलावा उर्दू में भी लेखनी चलाई है और हिंदी और उर्दू की प्रायः सभी विधाओं में साधिकार लिखा है |आपकी दर्जनों कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं और कई प्रकाशनाधीन हैं |
तीर्थक्षेत्र सोनागिरि के महात्म्य का संवाद शैली में सरस वर्णन करते हुए उनका एक प्रसिद्ध गीत यहाँ प्रस्तुत है जो डॉ.अक्षय दानी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है |
पूजा पाठ रचाऊँ मेरे बालम,आतम ध्यान लगाउंगी |
चंदा प्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
सोनागिर मत जाय री सेठानियाँ ,घर को वन है जायेगो |
ताती-ताती नरम-गरम मोय ,करके कौन खावएगो ||
भरत क्षेत्र में अतिशय तीरथ , नंगानंग कहावे |
टोंक-टोंक पर ध्वजा विराजे , शोभा खूब बढ़ावे||
सब प्रतिमाओं को अर्घ चढ़ाउंगी ,प्रभु चरनन चित लाऊँगी|
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
पति की सेवा , दर्शन, पूजन उत्तम शास्त्र बतावें |
पति की आज्ञा बिना कोई सत नारी कहीं न जावे ||
भीड़-भाड़ में कोई फुसलाकर , दूर कहीं ले जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
नित-प्रति स्वाध्याय पूजन में ,अपनो ध्यान लगाउंगी |
करूँ वन्दना और आरती , परिकम्मा को जाउंगी ||
अक्षत,धुप चढ़ाऊँ मेरे बालम ,जुग-जुग दीप जलाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
प्रभु की मैं तस्वीर लाय दूँ, ताको ध्यान लगाय ले|
दिव्य दृष्टि से मन मंदिर में ,दर्शन कर सुख पाय ले||
हो जायेगो धन खर्च तो गोरी ,तेरो पति भूखन मर जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
जैनेश्वरी लयुं मैं दीक्षा , आठों करम जराउंगी |
नाच नचूँ भव-भव नहीं फिर मैं ,ऐसो जोग मिलाऊन्गी||
बनूँ अर्जिका केश लोच कर , मुक्ति पद को पाऊँगी|
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
कर्म जरें जर जाएँ , यह दिल होरी सो मती जरइयो|
मूंड मुड़ाय छोड़ बच्चन कों, घर को मती भूलइयो||
चोर कोऊ घुस आय ठरगजी, सब चोरी कर जायेगो |
ताती-ताती, नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
लोक लाज संसार के बंधन , अरहंत सच्चो वीरा|
नरियल कुण्ड को नीर पियत ही,मिट जाय तपन शरीरा||
अनहद गाना गाऊँ मेरे सजना,बजानी शिला बजाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
सच्चो हे अरहंत अगर तो , मोकुं धन दिलवाय दे |
हँस के संग चलूँ तेरे गोरी , मोय यात्रा करवाय दे ||
धोको मत दे जइयो मेरी रानी ,पति बिन मौतन मर जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय, करके कौन खावएगो ||
तुम तो बालम ,धन के लोभी ,सब यहीं पर रह जायेगो |
पाप,पुण्य और ज्ञान, ध्यान ही ,सब के संग में जायेगो ||
जबरन तुमको अब मैं 'कमल'जी अपने संग ले जाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
तीर्थक्षेत्र सोनागिरि के महात्म्य का संवाद शैली में सरस वर्णन करते हुए उनका एक प्रसिद्ध गीत यहाँ प्रस्तुत है जो डॉ.अक्षय दानी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है |
पूजा पाठ रचाऊँ मेरे बालम,आतम ध्यान लगाउंगी |
चंदा प्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
सोनागिर मत जाय री सेठानियाँ ,घर को वन है जायेगो |
ताती-ताती नरम-गरम मोय ,करके कौन खावएगो ||
भरत क्षेत्र में अतिशय तीरथ , नंगानंग कहावे |
टोंक-टोंक पर ध्वजा विराजे , शोभा खूब बढ़ावे||
सब प्रतिमाओं को अर्घ चढ़ाउंगी ,प्रभु चरनन चित लाऊँगी|
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
पति की सेवा , दर्शन, पूजन उत्तम शास्त्र बतावें |
पति की आज्ञा बिना कोई सत नारी कहीं न जावे ||
भीड़-भाड़ में कोई फुसलाकर , दूर कहीं ले जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
नित-प्रति स्वाध्याय पूजन में ,अपनो ध्यान लगाउंगी |
करूँ वन्दना और आरती , परिकम्मा को जाउंगी ||
अक्षत,धुप चढ़ाऊँ मेरे बालम ,जुग-जुग दीप जलाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
प्रभु की मैं तस्वीर लाय दूँ, ताको ध्यान लगाय ले|
दिव्य दृष्टि से मन मंदिर में ,दर्शन कर सुख पाय ले||
हो जायेगो धन खर्च तो गोरी ,तेरो पति भूखन मर जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
जैनेश्वरी लयुं मैं दीक्षा , आठों करम जराउंगी |
नाच नचूँ भव-भव नहीं फिर मैं ,ऐसो जोग मिलाऊन्गी||
बनूँ अर्जिका केश लोच कर , मुक्ति पद को पाऊँगी|
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
कर्म जरें जर जाएँ , यह दिल होरी सो मती जरइयो|
मूंड मुड़ाय छोड़ बच्चन कों, घर को मती भूलइयो||
चोर कोऊ घुस आय ठरगजी, सब चोरी कर जायेगो |
ताती-ताती, नरम-गरम मोय , करके कौन खावएगो ||
लोक लाज संसार के बंधन , अरहंत सच्चो वीरा|
नरियल कुण्ड को नीर पियत ही,मिट जाय तपन शरीरा||
अनहद गाना गाऊँ मेरे सजना,बजानी शिला बजाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
सच्चो हे अरहंत अगर तो , मोकुं धन दिलवाय दे |
हँस के संग चलूँ तेरे गोरी , मोय यात्रा करवाय दे ||
धोको मत दे जइयो मेरी रानी ,पति बिन मौतन मर जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम मोय, करके कौन खावएगो ||
तुम तो बालम ,धन के लोभी ,सब यहीं पर रह जायेगो |
पाप,पुण्य और ज्ञान, ध्यान ही ,सब के संग में जायेगो ||
जबरन तुमको अब मैं 'कमल'जी अपने संग ले जाउंगी |
चंदाप्रभु के दर्शन करने , सोनागिर को जाउंगी ||
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