सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

सोनागिरि के चंदाप्रभु

डॉ.कैलाश  'कमल'ग्वालियर के साहित्याकाश में उदित हुआ ऐसा जाज्वल्यमान नक्षत्र है जिसके प्रकाश से समूचा जैन जगत आलोकित रहा है |उनके लिखे आध्यात्मिक पद और भक्ति गीत के मधुर स्वर प्रायः  सभी जैन तीर्थों में गुंजरित होते हैं |ग्वालियर के प्रतिष्ठित वैद्य कविराज श्रीलाल जैन के सुपुत्र डॉ. कैलाश  'कमल'का जन्म ई.30-08-1925 में हुआ |आपने हिंदी के अलावा उर्दू में भी लेखनी चलाई है और हिंदी और उर्दू की प्रायः सभी विधाओं में साधिकार लिखा है |आपकी दर्जनों कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं और कई प्रकाशनाधीन हैं |
                 तीर्थक्षेत्र सोनागिरि के महात्म्य का संवाद शैली में सरस वर्णन करते हुए उनका एक प्रसिद्ध गीत यहाँ प्रस्तुत है जो डॉ.अक्षय दानी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है |
पूजा पाठ रचाऊँ मेरे बालम,आतम ध्यान लगाउंगी |
चंदा  प्रभु के  दर्शन  करने , सोनागिर  को  जाउंगी ||

सोनागिर मत जाय री सेठानियाँ ,घर को वन है जायेगो |
ताती-ताती   नरम-गरम  मोय ,करके  कौन   खावएगो ||

भरत  क्षेत्र  में   अतिशय   तीरथ ,    नंगानंग    कहावे |
टोंक-टोंक   पर   ध्वजा   विराजे ,  शोभा   खूब   बढ़ावे||
सब प्रतिमाओं को अर्घ चढ़ाउंगी ,प्रभु चरनन चित लाऊँगी|
चंदाप्रभु   के   दर्शन  करने ,  सोनागिर     को      जाउंगी ||

पति   की सेवा ,  दर्शन, पूजन   उत्तम   शास्त्र   बतावें |
पति  की  आज्ञा  बिना  कोई  सत  नारी  कहीं  न  जावे ||
भीड़-भाड़  में   कोई   फुसलाकर , दूर  कहीं  ले  जायेगो |
ताती-ताती ,  नरम-गरम  मोय , करके  कौन खावएगो ||

नित-प्रति स्वाध्याय पूजन में ,अपनो ध्यान लगाउंगी |
करूँ  वन्दना  और  आरती ,  परिकम्मा  को   जाउंगी ||
अक्षत,धुप चढ़ाऊँ मेरे बालम ,जुग-जुग दीप जलाउंगी |
चंदाप्रभु   के   दर्शन  करने ,  सोनागिर   को   जाउंगी ||

प्रभु  की   मैं  तस्वीर  लाय  दूँ, ताको  ध्यान लगाय ले|
दिव्य  दृष्टि  से  मन मंदिर में ,दर्शन कर सुख पाय ले||
हो जायेगो धन खर्च तो गोरी ,तेरो पति भूखन मर जायेगो |
ताती-ताती , नरम-गरम  मोय ,  करके   कौन   खावएगो ||

जैनेश्वरी   लयुं   मैं   दीक्षा ,  आठों   करम    जराउंगी  |
नाच नचूँ भव-भव नहीं फिर मैं ,ऐसो जोग मिलाऊन्गी||
बनूँ  अर्जिका  केश  लोच  कर , मुक्ति  पद  को पाऊँगी|
चंदाप्रभु   के   दर्शन   करने ,  सोनागिर   को   जाउंगी ||

कर्म  जरें  जर जाएँ , यह  दिल  होरी  सो  मती जरइयो|
मूंड  मुड़ाय  छोड़  बच्चन  कों, घर  को  मती  भूलइयो||
चोर  कोऊ  घुस आय  ठरगजी, सब  चोरी कर जायेगो |
ताती-ताती, नरम-गरम  मोय , करके  कौन खावएगो ||

लोक  लाज   संसार  के   बंधन , अरहंत  सच्चो   वीरा|
नरियल कुण्ड को नीर पियत ही,मिट जाय तपन शरीरा||
अनहद गाना गाऊँ मेरे सजना,बजानी शिला बजाउंगी |
चंदाप्रभु   के   दर्शन   करने ,  सोनागिर   को  जाउंगी ||

सच्चो  हे  अरहंत  अगर  तो ,  मोकुं  धन  दिलवाय दे |
हँस के  संग  चलूँ  तेरे   गोरी , मोय  यात्रा  करवाय दे ||
धोको मत दे जइयो मेरी रानी ,पति बिन मौतन मर जायेगो |
ताती-ताती  ,  नरम-गरम    मोय,  करके   कौन   खावएगो ||

तुम तो बालम ,धन के लोभी ,सब यहीं पर रह जायेगो |
पाप,पुण्य और ज्ञान, ध्यान ही ,सब के संग में जायेगो ||
जबरन तुमको अब मैं 'कमल'जी अपने संग ले जाउंगी |
चंदाप्रभु  के   दर्शन   करने ,  सोनागिर   को    जाउंगी || 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें