सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

वरहिया जैन समाज की विभूति :रामजीत जैन (एड.)

वरहिया जैन समाज को एक स्वतन्त्र और मूल जैन जाति या संघटना सिद्ध कर उसे दिगंबर जैन समाज में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने और उसका इतिहास लिखने वाले श्री रामजीत जैन ,(एड.)का जन्म उ.प्र.के आगरा जिले के ग्राम-कुर्रा चित्तरपुर में 2 जनवरी 1923 में हुआ |आपके पिता श्री करणसिंह जैन उस क्षेत्र के एक प्रसिद्ध श्रेष्ठी और संस्कारी व्यक्ति थे |आपकी माता का नाम श्रीमती रौनाबाई था |आपकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्राम कुर्राचित्तरपुर में हुई तथा उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की |धर्म और संस्कृति के अध्ययन में आपकी युवावस्था से ही रूचि रही |आपकी पहल पर ग्राम में सामाजिक विकास के अनेक कार्य हुए |विधि स्नातक बनने के बाद आपने ग्वालियर को स्थायी रूप से अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना और दानाओली में टकसाल वाली गली में निवास करने लगे |यहाँ ग्वालियर उच्च न्यायलय में आपने वकालत आरंभ की |अपनी सत्यनिष्ठा और धर्मप्रवणता के चलते आप एक सफल वकील तो न बन सके लेकिन एक ईमानदार,मृदुभाषी ,सरल स्वाभावी अधिवक्ता के रूप में आपकी ख्याति सदैव रही |
             आराधना पत्रिका के प्रधान संपादक व श्रमसाधना पत्रिका के संपादक के रूप में आपने अपनी रचनात्मकता की गहरी छाप छोड़ी |आपकी अनेक कृतियाँ और दर्जनों फुटकर आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए ,जो आपकी सृजन क्षमता का जीवन्त प्रमाण हैं |गोपाचल क्षेत्र को सुप्रतिष्ठ केवली का निर्वाण क्षेत्र प्रमाणित करने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त है ,जिसे व्यापक मान्यता प्राप्त हुई है |
    जैन इतिहासकार के रूप में भी आपकी विपुल ख्याति है |वरहिया जैन समाज का इतिहास "वरहियान्वय" ,जैसवाल जैन समाज का इतिहास ,खरौआ जैन समाज का इतिहास ,विजयवर्गीय जैन इतिहास ,गोलालारे जैन जाति का इतिहास ,बुढेलवाल जैन समाज का इतिहास आपके कीर्ति के गौरव स्तम्भ हैं |अन्य कृतियों में गोपाचल पूजांजलि ,ग्वालियर गौरव,गोपाचल सिद्धक्षेत्र ,सोनागिर वैभव ,गिरनार महात्म्य ,अतिशय क्षेत्र बजरंगगढ़ ,अतिशय क्षेत्र सिहोनियां ,तीर्थक्षेत्र मथुरा ,तीर्थक्षेत्र कम्पिला जी,हस्तिनापुर आख्यान ,पावनक्षेत्र शौरिपुर बटेश्वर विशेष उल्लेखनीय हैं |इस अनूठे और मौलिक कृतित्व के लिए आपको अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं |समूचे दिगंबर जैन समाज में आपकी ख्याति और बहुमान है |आपकी इहलीला 3 जुलाई 2005 में समाप्त हुई |अपने कृतित्व के माध्यम से इस नश्वर संसार में आपकी स्मृति आज जीवित है ||आप सही अर्थों में वरहिया जैन समाज के रत्न हैं, जिन पर समूचा समाज अपने को गौरवान्वित अनुभव करता है |

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