रविवार, 23 मार्च 2014

भट्टारक श्री चंद्रभूषण संस्थान,सोनागिर


जैन मठों और संस्थानों के प्रबंधन का दायित्व जिन यति तुल्य गरिमाओं के कन्धों पर रहा है, वे जैन परंपरा में भट्टारक के नाम से विश्रुत हैं | सुदूर अतीत में भट्टारक भी जैन मुनियों की भांति नग्न रहते थे लेकिन कालांतर में वस्त्र धारण करने की प्रथा आरंभ हुई | 'णग्गो विमोक्ख मग्गो " के आदर्श पर बल देने व दिगम्बरत्व को पूज्य मानने के कारण भट्टारकों  के लिए भी मृत्यु का समय निकट आने पर दिगम्बरत्व धारण कर संलेखना व्रत ग्रहण करने का विधान है |
      मंदिरों और मठों के प्रबंधन जैसे लौकिक कार्यों से जुड़े होने के कारण भट्टारकों का यति स्वरूप धीरे-धीरे लुप्त होकर शासकों की भांति राजसी स्वरूप ग्रहण करने लगा और उनका पट्टाभिषेक भी राजोचित ढंग से बड़ी भव्यता के साथ आयोजित होने लगा |
       भट्टारकों के कार्य क्षेत्र में -मूर्ति प्रतिष्ठा ;मंदिरों ,मठों का सुचारू प्रबंधन ;प्राचीन आर्ष ग्रंथों का संग्रहण,संरक्षण ;जैन साहित्य ,कला ,संगीत आदि का संवर्धन जैसे विषय शामिल रहे हैं |
        समूचे भारतवर्ष में भट्टारकों के कई पीठ स्थापित रहे हैं जिनमें श्रमणगिरि सोनागिर स्थित भट्टारक पीठ भी एक है |जिस पर प्रमुखतः बलात्कार गण शाखा का वर्चस्व रहा है |अनेक यशस्वी  भट्टारकों से सुशोभित इस पीठ के अंतिम भट्टारक श्री चंद्रभूषण जी, जो वरहिया समुदाय से  थे -वि.सं.2001 में अभिषिक्त हुए ,जिनका वि.सं.2031 में देहांत हो गया |योग्य शिष्य न मिलने के कारण भट्टारक श्री चंद्रभूषण जी ने अपने जीवनकाल में ही वरहिया समाज के प्रमुख लोगों से विमर्श कर अपने नियंत्रणाधीन परिसंपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक प्रबंधकारिणी कमेटी का गठन किया  था  और जिसके वे अध्यक्ष रहे |भट्टारक जी के निधन के पश्चात् से  श्री दिगंबर जैन वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी सोनागिर इस दायित्व का सुचारू निर्वहन कर रही है | वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी के प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में चन्द्र चौक स्थित विशाल भट्टारक कोठी जिसमें मंदिर नं.8 व 9 तथा भगवान शांतिनाथ का मंदिर स्थित है ,आमौल वालों की धर्मशाला ,दक्खोबाई का मंदिर नं.11 ,मुन्नालाल धनोरिया करहिया वालों का मंदिर नं .12 ,मंदिर नं.17 व उससे संलग्न धर्मशाला प्रमुख रूप से शामिल है |
               अपने गठन के समय से ही वरहिया जैन समाज की अनेक सेवाभावी गरिमाओं का सहयोग और समर्थन श्री दिगंबर जैन वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी सोनागिर को प्राप्त रहा है |जिनके कुशल निर्देशन में अनेक उपलब्धियां हुई हैं |
               वर्तमान प्रबंधन द्वारा मंदिर नं.12 का पुनर्निर्माण  कर उसे भव्य स्वरूप प्रदान किया गया है |भट्टारक कोठी स्थित नवीन धर्मशाला में 46 कमरों का निर्माण कराया गया है |मंदिर नं.17 का जीर्णोद्धार कर उसके प्रथम तल पर भी 6 कमरों का जीर्णोद्धार किया गया है |इसी मंदिर के दूसरे तल पर स्थित भगवान चंद्रप्रभु के मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है |आमोल वाली धर्मशाला में यात्री भोजनालय कक्ष का निर्माण कराया गया है ,जहाँ नाममात्र के शुल्क पर सुरुचिपूर्ण भोजन उपलब्ध कराया जाता है |इसी धर्मशाला के दूसरे तल पर 6 कमरों का नवीन निर्माण कराया गया है |इसके अतिरिक्त मुनियों व त्यागी, व्रतियों के निमित्त नियमित चौके की व्यवस्था भी इस कमेटी द्वारा की जा रही है |शांतिनाथ जिनालय के सामने ऊपरी मंजिल स्थित बारादरी प्रांगण में 6 कमरों का निर्माण कराया गया है व मंदिर नं.9 के तीसरे तल पर एक हाल का निर्माण हुआ है|भट्टारक कोठी स्थित सभी जिनालयों के शिखरों का जीर्णोद्धार भी कमेटी द्वारा कराया गया है |

            भट्टारक कोठी स्थित मंदिर नं.8 में बहुमूल्य रत्नों की चौबीसी स्थापित है ,जो एक अप्रतिम संग्रह है |यहाँ स्थित शास्त्र भंडार में अति प्राचीन 925 ग्रंथों का बहुमूल्य ,दुर्लभ संग्रह है जिसमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित है |मनहर देव के नाम विख्यात भगवान शांतिनाथ की 16 फीट उत्तुंग प्रतिमा जो श्रेष्ठी पाड़ा शाह द्वारा प्रतिष्ठापित 16 अतिशयकारी प्रतिमाओं में से एक है और मूलतः चैत्य ग्राम (करहिया) में स्थापित थी -यहाँ विराजित है |2 वर्ष पूर्व पंचकल्याणक महामहोत्सव का गरिमापूर्ण आयोजन वरहिया जनों द्वारा किया गया ,जिससे अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हुई |
        इन अनेक उल्लेख्य उपलब्धियों के बावजूद यहाँ अभी बहुत से कार्य किये जाने शेष हैं |जिसके लिए लोगों से  उदार सहयोग की अपेक्षा है |कतिपय जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री दिगंबर जैन वरहिया कमेटी ,सोनागिर के निवर्तमान पदाधिकारी श्री रामजीलाल जैन व श्री रवीन्द्र जैन का आभारी हूँ |

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