सोमवार, 21 अप्रैल 2014

करहिया ग्राम :एक परिचय


करहिया ग्राम ग्वालियर देहात (गिर्द)जिले में ग्वालियर से 60 किलोमीटर की दूरी  पर स्थित है |विक्रम संवत 1632 में परमार वंशी क्षत्रिय खड़गराय ने नरवर के तत्कालीन नरेश गजसिंह कछवाह की अनुज्ञा प्राप्त कर यह ग्राम बसाया था जो विन्ध्यघाटी में नरवर से 16 मील की दूरी  पर स्थित है |गाँव की सुरक्षा के निमित्त इसके चारों ओर पक्का परकोटा (सुरक्षा प्राचीर) था ,जो अब नहीं है लेकिन उसके भग्नावशेष आज भी जहाँ-तहाँ मौजूद हैं |गाँव की बसाहट के समय से ही वरहिया जैन समुदाय के लोग यहाँ बड़ी संख्या में निवास करते हैं ,जिन्हें सभी समुदायों में आदर और बहुमान प्राप्त है |ये ही लोग यहाँ की अर्थ-व्यवस्था के वास्तविक सूत्रधार हैं |
              व्यापार और वाणिज्य में कुशल होने के साथ-साथ वरहिया लोग उदभट योद्धा भी रहे हैं |करहिया के परमार शासकों के दीवान वरहिया समुदाय के कुम्हरिया परिवार से थे जिन्होंने विक्रम संवत 1824 में भरतपुर के जाट योद्धा जवाहर सिंह और करहिया के परमारों के बीच  हुए संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और शत्रुओं से जमकर लोहा लिया |जिसमें उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर परमारों की जीत की नींव रखी |इस युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले कुम्हरिया परिवार के बलिदानियों के स्मारक छतरी के रूप में आज भी यहाँ मौजूद हैं |जो 'जे कम्मे शूरा,ते धम्मे शूरा 'की उक्ति को चरितार्थ करते हैं |
             यहाँ के वरहिया जन बहुत धार्मिक ,सहृदय और परम्परानिष्ठ रहे हैं |यहाँ कुम्हरिया (चौधरी व दीवान ),धनोरिया ,पलैया ,रोंसरया प्रभृति अनेक गौत्रों के लोग परस्पर सौहार्द के साथ रहते और धर्म पालन करते हैं |ग्वालियर के निकटवर्ती पार गाँव के रहने वाले कुम्हरिया परिवार व रायपुर गाँव के निवासी धनोरिया परिवार करहिया की बसाहट के समय से ही यहाँ आकर रहने लगे थे और यहाँ की उन्नति में सहभागी बने |
              पार गाँव से आये कुम्हरिया लोगों ने यहाँ खुशालीराम दीवान की अटारी में अपने साथ लाई जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर एक चैत्य की स्थापना की | बाद में वृजलाल जी दीवान ने अपने पूर्वज कमल सिंह दीवान का मकान मंदिर निर्माण हेतु विक्रम संवत 1922 में वरहिया समाज को दान में दिया |जहाँ सं.1949 में जैन समाज ने  एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया ,जिसमें सात वेदियाँ हैं |परमसुख ,लखमीचंद धनोरिया ने भी इस मंदिर में एक वेदिका की स्थापना कराई व धर्मशाला का निर्माण कराया ।


              वरहिया-विलास के विद्वान् लेखक पं.लेखराज वरहिया ,श्रीपाल चरित के रचयिता कविवर परिमल ,रविव्रत कथा ,सोनागिर पच्चीसी ,चन्द्र प्रभु पूजा इत्यादि कृतियों के प्रणेता निहाल चन्द्र वरहिया इसी गाँव के रत्न हैं जिनकी कीर्ति सभी ओर फैली है |समाजसेवी लालमणि प्रसाद जैन व क्षुल्लक पूज्यसागर (लौकिक नाम-सुनहरी लाल धनोरिया )भी इसी गाँव के निवासी हैं |यहाँ के रहने वाले दर्जनों परिवार आजीविका के सिलसिले में डबरा और ग्वालियर आकर बस गए हैं लेकिन अपनी पितृभूमि के साथ उनका जुड़ाव और लगाव आज भी गहरा है और गाँव में होने वाले धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में उनकी पूरी भागीदारी रहती है |

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