सोमवार, 24 नवंबर 2014

समाजसेवी :लालमणि प्रसाद जैन


लम्बी कद काठी व गाम्भीर्य ,सहजता,और मिलनसारिता के सजीव विग्रह पलैया गौत्रोत्पन्न लालमणि प्रसाद जैन ,जिन्हें लालमन जी के नाम से प्रायः लोग जानते हैं -का जन्म ईस्वी सन 1937 में भाद्रपद शुक्ला षष्ठी को ग्वालियर जनपद के करहिया ग्राम में हुआ |आपके पिता का नाम श्री लखमी चन्द्र वरहिया व माताश्री का नाम दक्खो बाई है |दुर्भाग्यवश आप पितृ-स्नेह से वंचित रहे क्योंकि आपके जन्म के 2 मास पूर्व ही आपके पिता का देहांत हो गया था | आपका लालन-पालन आपके ताऊ श्री भगवान लाल जी वरहिया ने किया और अपना पुत्रवत स्नेह दिया |मणि जी के पूर्वज उम्मेदगढ़ के रहने वाले हैं जो आजीविका की तलाश में पहले आरोन और बाद में करहिया आकर बस गये |लेकिन आपकी किशोरावस्था में ही आपके ताऊ भगवान लाल जी का भी स्वर्गवास हो गया और उनका स्नेह भरा हाथ भी आपके ऊपर से उठ गया |जिसके चलते गृहस्थी का कठिन बोझ आपके नाजुक कन्धों पर आ गया |इन विषम परिस्थितियों में आप माध्यमिक स्तर तक ही अपनी पढ़ाई पूरी कर सके |लेकिन बाद में कुछ लोगों की तानाकशी से विचलित होकर आपने आगे पढ़ने का निश्चय किया और सन 1978 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और विशारद किया |आप काफी प्रत्युत्पन्न मति है |गायन के अलावा साहित्य में भी आपकी गहरी अभिरुचि है |अध्ययनशील होने के साथ ही आप रचनाधर्मी भी है |मणि उपनाम से आपने कई रचनाएँ की हैं जो यत्र-तत्र पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहीं हैं |आपने 'वरहिया जैन जाग्रति 'पत्रिका का संपादन भी किया |इसके अतिरिक्त आपने उपन्यास भी लिखे हैं ,जो अप्रकाशित हैं |आपकी वक्तृता के तो सभी कायल हैं |आप अपनी वाग्मिता  से अपने विरोधियों को भी सहज ही में अभिभूत और निरुत्तर कर देते हैं | सामाजिक फलक पर आपकी सक्रियता निरंतर रही है |करहिया जैन मंदिर के मंत्री के रूप में आपने लगभग 15 वर्षों तक अपने दायित्व का निर्वहन किया |श्री सोनागिर सिद्धक्षेत्र संरक्षिणी सभा के सदस्य रहे व भट्टारक चंद्रभूषण संस्थान ,सोनागिर के मंत्री और अध्यक्ष के रूप में लम्बे समय तक अपने कार्यभार का निर्वहन किया |आप अखिल भारतीय दिगंबर जैन महासभा के आजीवन सदस्य हैं |श्री गोपालदास जैन सिद्धांत महाविद्यालय ,मुरैना की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं व अखिल भारतीय वरहिया महासभा के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे हैं |विभिन्न पंचकल्याणकों के सफल आयोजनों में आपकी प्रभावी और सहयोगी भूमिका रही है |
                       राजनीतिक फलक पर भी आपकी सक्रियता रही है |तत्कालीन मध्यभारत के मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन का आपको राजनीतिक सानिध्य प्राप्त रहा |आप कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं |
            आजीविका के लिए आपने सन 1953 में सभराई ग्राम में किराने की दुकान शुरू की और इसके साथ ही व्यापारिक क्षेत्र में पदार्पण किया और इसके दो वर्ष पश्चात् ही किराने का थोक कारोबार व बजाजी का काम किया |सन 1967 में आपने ग्वालियर में सर्राफा बाजार में पहले साझीदारी में और फिर बाद में स्वतन्त्र रूप से सोने-चांदी का कारोबार शुरू किया ,जो अब तक जारी है |
          आप की सहधर्मिणी का नाम श्रीमती सुशीला बाई है |जिनका स्वर्गवास हो चुका है |आपके दो पुत्र और चार पुत्रियाँ हैं | आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गृहस्थ-साधु का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।पनिहार में प्रवर्तित नवीन तीर्थ को विकसित करने में आपका उल्लेखनीय योगदान रहा है। आप वरहिया जैन समाज के विवादित लेकिन सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं |

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