गुरुवार, 6 अगस्त 2015

'वरहिया विलास' के प्रणेता पं.लेखराज वरहिया


ग्वालियर जनपद में स्थित 'करहिया 'ग्राम वरहिया जैन समाज की प्रमुख निवास-स्थली के रूप में जाना जाता रहा है |इस ग्राम का इतिहास बहुत गौरवशाली है |इस ग्राम ने अपनी क्रोड में उत्पन्न अनेक रत्न वरहिया जैन समाज को दिए हैं |जिनमें 'वरहिया-विलास'कृति के प्रणेता पंडित लेखराज जी वरहिया एक हैं ,जिनका जन्म पलैया गौत्रीय जगराम जी ,जिनका अपर नाम जगोलेराम था -के घर वि.सं.1925 में हुआ |बालक का नामकरण लेखराज किया गया |पिता के सानिध्य में बालक लेखराज का धार्मिक वातावरण में लालन-पालन हुआ |इस प्रकार धार्मिक संस्कार उन्हें आपने माता-पिता से घुट्टी में ही मिले थे |अपनी बाल्यावस्था से ही वह बहुत सात्विक ,संस्कारवान और धर्मानुरागी रहे |अध्ययन के प्रति उनके मन में तीव्र लालसा देखकर उनके पिता ने उन्हें पढ़ाने के निमित्त एक शिक्षक का प्रबंध किया क्योंकि तत्समय ग्राम में  पठन-पाठन की कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी |किशोरावस्था में ही आपने कन्द-मूल का आजीवन त्यागकर अपनी प्रगाढ़ धर्मनिष्ठता का परिचय दिया |अपनी सरलता और सज्जनोचित व्यवहार के कारण जैन समाज में आपके प्रति गहरा समादर का भाव रहा |आपका पहनावा भी भद्रोचित था |आप श्वेत वस्त्र धारण करते थे और सर पर पगड़ी बांधते थे |आपका प्रभावशाली व्यक्तित्व लोगों को सहज ही प्रभावित करता था |आपने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार को अपने जीवन का ध्येय बना लिया और जिन-वाणी की आराधना में जीवन भर निरत रहे |'वरहिया-विलास'आपकी एकमात्र उपलब्ध कृति है |जिसमें आपकी बहुमुखी प्रतिभा का निदर्शन होता है |इस कृति के दो भाग हैं |जिसके पूर्वार्ध में पूजाएं संग्रहीत हैं और उत्तरार्द्ध में स्तुति,लावनी,भजन ,बारहखड़ी इत्यादि रचनाएँ  संग्रहित है |आपकी उक्त रचनाएँ भाव और कला पक्ष की दृष्टि से अत्यंत पुष्ट और समृद्ध हैं |वरहिया विलास की भूमिका ग्वालियर निवासी पंडित कपूरचन्द्र जैन ने लिखी और ग्वालियर के ही श्रेष्ठी लखमी चन्द्र पहाड़िया ने इसका ई.1950 में प्रकाशन कराया |53 वर्ष की अल्पायु में वि.सं.1978 की माघ शुक्ला चतुर्दशी को आपका निधन हुआ |करहिया निवासी सेठ सूबालाल जी ,गेंदालाल जी के आप पितामह हैं |

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