सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

सराक जैन

प्राचीन काल में भारत के प्रायः सभी भागों में ,विशेष रूप से उत्तर भारत में जैन धर्म के अनुयायियों की काफी बड़ी संख्या रही है |विहार ,झारखण्ड ,उड़ीसा ,बंगाल आदि प्रदेश जो पार्श्वनाथ और वर्धमान महावीर की कर्मस्थली रहे हैं ,में उनके अनुयायियों की बहुत बड़ी संख्या थी |
                         कालांतर में जब राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं और जैन संघ की शक्ति और प्रभा क्षीण हुई तो अनेक प्रकार के प्रलोभनों और दवाबों के चलते बड़ी संख्या में यहाँ के लोगों ने धर्म-परिवर्तन कर लिया |प्रकट रूप से तो ये लोग जैन मत से विमुख हो गये लेकिन अवचेतन रूप से जैन मूल्यों को अपने जीवन-व्यवहार में आत्मसात किये रहे |सैकड़ों वर्ष बाद भी ये अध्यात्मिक मूल्य उनके आचार-विचार में आज भी शामिल हैं |तमिलनाडु के नैनार,उत्तराखंड के डिभरी,मेदनीपुर के सदगोप व बिहार ,झारखण्ड ,उड़ीसा ,बंगाल में ये लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं और सराक नाम से जाने जाते हैं |पार्श्वनाथ को अपने कुलदेवता के रूप में पूजने वाले इन लोगों की 6-7 लाख की आबादी इन क्षेत्रों के लगभग 500 ग्रामों में निवासरत हैं ,जो आपने नाम के साथ सराक शब्द जोड़ते हैं ,जो वास्तव में श्रावक शब्द का ही अपभ्रंश है |
                   ये वास्तव में प्रच्छन्न जैन ही हैं क्योंकि इनके आचार-विचार ,मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों में जैन मतावलंबियों के आचार-विचार,मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों की ही प्रतिच्छवि ही दिखती है |सराक जाति के गौत्र जैन तीर्थंकरों के नाम पर,जैसे आदिदेव ,शांतिदेव,अनंतदेव ,धर्मदेव आदि मिलते हैं ,जो जैन परंपरा से इनकी निकटता की द्योतक है |ये पूर्ण शाकाहारी और अहिंसक हैं |सूर्योदय के पूर्व और सूर्योदय के पश्चात् भोजन नहीं करते और छानकर पानी पीते हैं |उदुम्बर यानी गूलर,पीपल आदि का सेवन नहीं करते |शौच के कपड़े बदले बिना किसी को नहीं छूते और छानकर पानी पीते हैं और बिना स्नान किये भोजन ग्रहण नहीं करते |स्वजाति में ही विवाह सम्बन्ध करने वाले इस समुदाय में विधवा विवाह परंपरा से वर्जित है |सराक समाज के उन्नयन के लिए अनेक जैन संस्थाएं आगे आई हैं और इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं |मुनि -श्री ज्ञानसागर जी ने तो इसे अपने जीवन का  एक मिशन ही बना लिया है ||

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