पंडितवर्य गोपालदास जी वरैया को दिगंबर जैन प्रान्तिक सभा मुंबई द्वारा 'स्याद्वादवारिधि ' उपाधि से सम्मानित करते हुए उन्हें समर्पित अभिनन्दन-पत्र जिसमें उनका व्यक्तित्व और कृतित्व प्रतिभासित होता है |
अभिनन्दन-पत्र
(1)
जिनधर्म का मर्मज्ञ और विस्तारकर्ता कौन है ?
निःस्वार्थता से धर्मसेवा कार्य करता कौन है ?
परवाद में स्याद्वाद का झंडा उड़ाता कौन है ?
सत्पक्ष के सम्मुख न धन को सिर झुकाता कौन है ?
(2)
प्राचीन और नवीन मत का प्रवर पंडित कौन है ?
वक्तृत्व ,लेखन,वाद-आदिक,कलामंडित कौन है ?
इत्यादि प्रश्नों का सदुत्तर यही मिलता एक है
गोपालदास सुधी वरैया वंश-भूषण एक है ||
(3 )
अतएव इस प्रान्तिक सभा ने,ह्रदय के उल्लास से
कर्तव्य पालन के लिए,निज भक्तिभाव विकास से |
यह वर्णमय लघुभेंट सम्मुख की उपस्थित आपके
स्वीकार हो हे प्राज्ञवर !आगार सुगुण कलाप के ||
(4 )
स्याद्वाद्वारिधि शुभ इसी उपनाम के वरयोग की
अपनाइए और कीजिये महनीय इस संयोग की |
इस में न पर कुछ आपका हमने किया उपकार है
केवल हमारी भक्ति का यह आंतरिक उद्गार है ||
(5 )
बढ़ता न वारिधि मान,उसको यदि जगत वारिधि कहे
वह तो बड़ा है स्वयं ही, कोई कहे या न कहे |
इस ही प्रकार अपार है स्याद्वाद विद्या आपमें
'स्याद्वादवारिधि'पद अपेक्षित है न उसके माप में ||
(6)
परहित निरत हो इस सभा की जड़ जमाई आपने
चिरकाल श्रमजल सींचकर,ऊँची बनाई आपने |
यह आपकी है वस्तु इसको भूलिएगा मत कभी
केवल यही करते निवेदन नम्र होकर हम सभी ||
(गोपालदास जी का जन्म ई.१८६७ ,देहावसान ई.१९१७ )
अभिनन्दन-पत्र
(1)
जिनधर्म का मर्मज्ञ और विस्तारकर्ता कौन है ?
निःस्वार्थता से धर्मसेवा कार्य करता कौन है ?
परवाद में स्याद्वाद का झंडा उड़ाता कौन है ?
सत्पक्ष के सम्मुख न धन को सिर झुकाता कौन है ?
(2)
प्राचीन और नवीन मत का प्रवर पंडित कौन है ?
वक्तृत्व ,लेखन,वाद-आदिक,कलामंडित कौन है ?
इत्यादि प्रश्नों का सदुत्तर यही मिलता एक है
गोपालदास सुधी वरैया वंश-भूषण एक है ||
(3 )
अतएव इस प्रान्तिक सभा ने,ह्रदय के उल्लास से
कर्तव्य पालन के लिए,निज भक्तिभाव विकास से |
यह वर्णमय लघुभेंट सम्मुख की उपस्थित आपके
स्वीकार हो हे प्राज्ञवर !आगार सुगुण कलाप के ||
(4 )
स्याद्वाद्वारिधि शुभ इसी उपनाम के वरयोग की
अपनाइए और कीजिये महनीय इस संयोग की |
इस में न पर कुछ आपका हमने किया उपकार है
केवल हमारी भक्ति का यह आंतरिक उद्गार है ||
(5 )
बढ़ता न वारिधि मान,उसको यदि जगत वारिधि कहे
वह तो बड़ा है स्वयं ही, कोई कहे या न कहे |
इस ही प्रकार अपार है स्याद्वाद विद्या आपमें
'स्याद्वादवारिधि'पद अपेक्षित है न उसके माप में ||
(6)
परहित निरत हो इस सभा की जड़ जमाई आपने
चिरकाल श्रमजल सींचकर,ऊँची बनाई आपने |
यह आपकी है वस्तु इसको भूलिएगा मत कभी
केवल यही करते निवेदन नम्र होकर हम सभी ||
(गोपालदास जी का जन्म ई.१८६७ ,देहावसान ई.१९१७ )
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