चौरासी जाति
✍️अथ 'मनरंग कीर्ति 'चौरासी जाति की जयमाल लिख्यते-
श्री नेमीश्वर चरनजुग
तारन तरन जहाज।
नमो मदन मारन मेले
मदन मत्त मृगराज।
श्री सिवदेवी नंद को
जूना गढ़ गिरनारि।
भयो महोत्सव शुभ तहां
सुनिये सब नरनारि।
जाति चौरासी जैन मत
देस – देस के आन।
चारि छोहनी भीर सब
इकठी भई महान।
माल भई जिन चंद जी
निज कर इंद्र बनाय।
लेवे को भविजन सकल
उमगे चित हरषाय।
जौन जौन सुभ देस के
आये भाव उमगाय।
तौन तौन के नाम सुभ
कछु कहिये चित लाय।
कौसल कासी सुभ देस जान
कश्मीर और कौंरू बखान।
तैलंग अंग अरू बंग देस
करनाट लाट अरू घोटवेस।
वागड वन्वर पुनि और किंलग
मालवा मध्य चित्तौड़ चंग।
गुजरात सकल सुभ सिंधु चोल
निज निज भेषन को धरि अमोल।
सोरठ द्रावड़ मह चीन चीन
बंगाला मागध जो प्रवीन।
अंभोज पोंड्र केरल मनाय
सुभ देस मलय गिरि सकल आय।
सौ वीर अवंतिक पुनि उनाट
बीजापुर अरू सुंदर विराट।
मरहट मेवात अरू माड़वार
पंचाल देस अरू सिग ठुँठार।
कालिंजर गगहर कक्ष देस
वीशाल मनोहर गौड़ वेस।
कुरूजंगल तिरऊत है विनोद
सौरम्य तिलोरक कह्यौ मोद।
सुभ कालकीट सोहै किरात
अरू पुंड मल्ल त्रिकिंलग जात।
वैदुर्भ सुकुरू अरू सुभ्य देस
पुनि चेदी उद सोमधृ देस।
सुभ कामरूप अरू अघ्न होय
प्रांतर दसार्न पुन्नाट सोय।
पाडता उसीर सुभ है कसे
उद्दू विद्रुम अरू अघ चेर।
सोहै अरद्र पुनि विड बखान
पुह कलावती कारूक सुजान।
हीरन्य और सुभ कूल संग
सौरम्य जोध आये सुचंग।
अम्मेर मंगलावति सुजोय
पुनि पांडु और पांडल मनोय।
जोडाहल कहिये सूरमंद
कुल कम्म अंदु जानौ अमंद।
कांची सौभद्र रावल सुजान
गंभीर भोट कोंकन बखान।
इत्यादि देस औरऊ अनेक
सब इकटे में धरि हिय विवेक।
तहा इंद्र सचि आइके
माला रची सुभाय।
कछु ताको वरनन करौ
जा सुनि चित हरषाय।
महा गंधकारी महा रूपधारी
लगे पुष्प नाना संभारी-संभारी।
चमेली सुचंपा घेनेरे घेनेरे।
सुवंधूक जाही जुही के भले रे।
गुलाला गुलाबी सदा सो गुलाबा
भले दाउदी गुंजते भौरसावा।
गुंथी कल्प साखी तने पुष्पलाई
लगाये महा कंज बेला चुनाई।
महा नाग मुक्ता लगे जासु माही
चुनी सो चुनी चारू सोभा लखाही।
कहीं पीत आभा कहीं स्यामताई
कहीं रक्त मानिक्य सोभा धिकाई।
कहीं स्वेत माला विराजै विसाला
लगे वंग के खंड की सोभ आला।
कहीं लागि पन्ना महा कांतिकारी
चंहुओर जाने निजाभा विभारी।
बनी माल ऐसी कहाँ सोभ जाकी
बनाई भई भेस वज्जी तियाकी।
धरी नाभ आगे महा सोभ पाई
चढ़ाई रची नाथ को आप लाई।
तहा राज राने अनेकान आये
भले सेठि साहू विना गंतु धाये।
खड़े देवदेवी चहूँ ओर घेरे
करै सब्द जै जै महा भक्ति पेरे।
खगी और खगेसा महा तेजधारे
चरै चारिहूं धा जिनाज्ञा विथारे।
वहां जाति चौरासि यों जैन केरी
भई आइ मेला सुमेला घनेरी।
बजावे वहां दुंदुभी देव तारी
नगारें बजैं सर्व आनंदकारी।
बजैं ताल मिरदंग नाना नवीना
बजैं वंस कणसाल कानू नवीना।
नटै नाटकी नाटिनी नाटनी के
कटै पाप संताप सारे तिन्ही के।
महा भामिनी को किलारा सुगावे
चलै भाँति सो भाव अच्छे बतावे।
सजै नृत्य संगीत संगीत गावें
बड़े भावसों देव ताली बजावें।
भेल पाद विन्यास की रति ल्यावें
मिलै ताल सौं छुद्र घंटी बजावें।
ऐसो उत्सव जहं भयौ
कहत न पावत पार।
अब चौरासी जाति के
नाम कहौ निरधार।
खडायना सुगोड गंगरानिया बखानिया
असीतवाल कोरवाल दूसरे सुवानिया।
खंडेलवाल ओसवाल श्री श्रिमाल जानिया
वघेरवाल अग्रवाल जैसवाल मानिया।
लंबेंचूवाल श्रीयमाल धाकड़ा जुरे घने
सहेलवाल ऊँवडे संडेरिया गने गने।
माढवा लवायडी कपोल जाति के भने
दसौरवाल पल्लिवाल गोललार के घने।
नरायना सुनागरीय कांथडा चितोड़िया
भटेर गोलपूर्व और भट्ट नागरे भिया।
घनोरवाल रैकवाल झारिड़ी संवालिया
चतुर्थ और पंचमा सुजाय ला कराहिया।
सुलाडवाल सूरिवाल जंवुसार धाइया
श्रीयगौड जाति के अनेक लोग आइया।
कहे सुनार सिंहपोर सेरिहीय है घने
गुरू सुवाल जेहरान डेडुवाल सोहने।
खडवड गोलसिंगारे मेठ तवालही
टठतवाल पुरवाल 'वरहिया' है सही।
मगलवाल अरू पुकरवाल हर सौरिया
वध नो राज लहराक है अन दौरिया।
हर दौरा श्रीमाली नाना वाल जू
माडाहाडा सेरहिया अकनाल जू।
करनसिया मझकरा कहे कोलापुरी
साचौरा गृहपत्तीना गद्रह कीकुरी।
सकल जाँगरा पोरवार कर वारजे
सोरठिया पुरवार कठन है लारजे।
भले अयोध्या पूरब आनंद सो चले
पद्मावति पुरवार पवयडा हे भले।
वासक माको मठी अटस परवार है
कहे दसेरा पोरवार हितकार है।
औ माली पुरवार सकल ये जानिया
निज निज भाषा बोलत आनंद मानिया।
चार्चा संग्रह ग्रंथ महा अभिराम है
ता मधि जिनमत जाति चौरासी नाम है।
ताहि देखि हम इहा लिखि सुनियौ सही
भूल जहां कछु होय तहां सोधौ कही।
ऐसे सब ही जात
भेला है मेला भयौ।
निज निज मन हरषात
उमगे माला लेन को।
और अनेकन भूपसों
मागै माल बढ़ाय।
ताको वरनन करते हौ
सुनऊ भव्य मनलाय।
नवाय माथ जोरि हाथ नाभ माल दीजियै
मगाय देव हेमराशि सो भंडार कीजिए।
सहस वीर जांगरा दिनार भावसों
हजार दै चलीस गौड माँग ही छ चावसों।
खंडेलवाल यौं कहै असी हजार लीजियै
दिनार सेक जाति की दया दयाल कीजियै।
खडायना सुलछदेत है बड़ी उमंग सों
द्विलछ देय श्रीयमाल माल को अभंग सों।।
सुचारि लछ श्री श्रिमाल आठ लछ दूसरे।
वघेरवाल आठ दून देत दावसों भरे।
बत्तीस लाख जैसवार तास दून धाकड़ा
नारया सु अस्सि लाख ऐक कोटि काथड़ा।
दिनार देय देय हाथ जोड़ जोड़ माग ही
गुनानुवाद गाय गाय सीस को नवाय ही।
असीतवाल दोय कोटि लछ देत वानिया
करोरि चार कोरवाल आठ गंगरानिया।
सुओसवाल मोतिया अमोल देत है घने
अनेक रत्न अग्रवाल देत है बिना गने।
अमोल लाल मालकाज श्रीयमाल देत है
लुटाय के जिनेन्द्र पै सुफूल माल लेत है।
खड़े सुपल्लिवाल दूमड़े खड़े जहां
कहै अनेक कोठरी खजाने लीजियै महां।
कपूर जाफरान की सुगाड़िया भराय के
सहेलवाल औ लंबेचू देत आय आय के।
बनाय रत्न सो जड़ी लगाम जीन पाखरे
अमोल एक जाति के अनेक सोभ को धरे।
नरायना चितोडिया सनागरी मगाय के
बिना गने तुरंग देत सीस को नवाय के
भट्टेर गोल पूर्व और गोललार के घने
गयद साजि साजि वेस भेस सो सुहावने।
महा उतंग स्याम जेम नील भू धरा लसे
मगाय देत माल हेत इंद्र नाग को हसे।
चतुर्थ और पंचमा अनेक दसे देवही
लुटाय माल मालकाज श्री जिनेन्द्र से वही।
घनोरवाल यों कहे हमें न माल देओगे
भराय घी जहाज में कितेक दाम लेओगे।
इत्यादि बानिया समस्त आप आपु को सवै
सो एक एक सो अधिक देत दाम है जवै।
पवित्र पाप नाशनी जिनेन्द्र माल लेन को
उछाह सो खड़े जहां महान द्रव्य देन को।
अनेक सूम यों कहे भले सुलछ देत है
ताय दाम आपने सुफूल माल लेत है।
कठोर क्रूरचित्त के महात्म देखि जैन को
चले सुवाग मोडि मोडि होस नाहि वैन को।
अनेक देखि भूपती बड़ा अचंभ मान ही।
महाप्रताप जैन धर्म को हियै पछान ही।
कहें पुकारि यों क्षितीशनाथ माल दीजिए
जितेक राज लक्ष्मी सवै हमारि लीजिए।
गुरू बोले सुनि बात
वैसे माला ना मिलें।
महा पुन्य अवदात
होय जास सो पाव ही।
जिन भौम वनावहि भावधरे
प्रतिबींब शिरावहि जो सुथरे।
इकठी चवरासिऊँ जाति कर
दुखियाजन की सब पीर हरे।
जिन जज्ञ रचै छल छिद्र बिना
कछु मान वड़ाइन करै अपिना।
सब संघ चलाय वनै संग ही
परभावन अंग करै तब ही।
प्रिय बैन कहै सबसों हित के
नहि पालहि झूठ भले चित के।
इत के वित के नहि वैन सुनै
मन मै जिनराज सरूप गुनै।
लक्ष्मी वऊ धर्म विषै खरचै।
न करै कवहूँ मिथ्या परचै।
अरचै पद पंकज नेमतने
चरचै गुरजो निग्रंथ भने।
वह सास्त्र सुनै जिनमें सुदया
उपजै विनसै सगरी अदया।
यहि भांति अनेकन पुन्य मिया
करि पावहि माल अमोल जिया।
सबको यहि भांति संबोध कियो
तब ही सिंघराय बुलाय लियो।
अति आनंद पूरित माल दई
नृप सिंह तवे हरषाय लई ।
नर जो जिन माल अमोल लहै
गनियो नर जन्म सुफल वहै।
प्रगटै जस लोक विषै जिहि को
अति पुन्य भंडार भरै तिहि को।
जिहि की लक्ष्मी न घटै कबहूँ
दिन दून बढै परचै जबहूं।
यह लोक प्रसिद्ध कहै सगरे
जित धर्म तितै लक्ष्मी बगरे।
बिन धर्म रमा वुध यौ उचरै
विधवा तिय ज्यौं नहिं सोभ धरै।
मनरंग सदा चितमें धरिए
जिनधर्म दयामय विस्तरिए।
तरियै करि सो निज आतम को
हरियै सु अज्ञान महातम को।
परिये न भवोदधि में फिरिकै
करियै यह काज महा थिर कै।
यह चौरासी जाति की
माल कही हम विशेष।
पढ़त सुनत संकट मिटै
जै जै नेमि जिनेस।
जेठ महीना सुकुल पाख
तिथि पंचमि गुरुवार।
ता दिन संपूरन भई
जैमाला हितकार।
एक सहस नै सतक में षटवरषै करि दूरि।
संवत सो जानौ सुधी सदा रहौ सुख पूरि।
धन कन बढ़ै अनेक बढै कीरति दिन दूनी
दिन दिन सुख सरसाय कुमति छिन छिन में ऊनी।
अनगन गुनगन गहै लहै पगपग पटुताई।
कल्मष दूर कल्यान होय ता घर में आई
पुत्र पौत्र परताप सौ संपूरन निव से जिया
मनरंग लाल जा हृदय में बसत नेमि राजुलि पिया।
श्रावक धरमपाल मुसाहेब गंज साल विंदा लाल के सुपुत्र रतन बखान ही ।
अन्नजल के त्रसाय रहौ सु नगर आय अग्रवाल वंश गर्ग गोत सुबखान ही।
भादों जी की पूजा पाठक कथा रासा है विसाल हरष सहित लिख्यो अति सुखदान ही।
विक्रम सुदित्य सार संवत सुनौरसरल मास तिथि दिन ताको करो सु बखान ही।
एक ऊन सन बीस तास पर षोडस जानो
पोष सुकुल तिथि पूनम ऐंतवार सुबखानो ।
पढ़े गुनै जो कोई ताहि आतम सुख भाय के
गुलजारी के पठन को लिखी सु मन वच काय के।
भूल चूक सब सोंधियौ।