सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

गुरुवर्य पं.गोपालदास वरैया

जैन-जाग्रति के पुरस्कर्ताओं की पंक्ति में एक उल्लेखनीय नाम स्यादवाद-वारिधि,वादिगज-केशरी न्याय-वाचस्पति,गुरुवर्य पंडित गोपालदास वरैया का है |
                           पंडित जी का जन्म ई.1867 में आगरा(उ.प्र.)में श्री लक्ष्मण दास जी जैन के घर हुआ था |आपके पिता की आर्थिक स्थिति बहुत सामान्य थी |जिसके कारण उन्होंने साधारण अंग्रेजी स्कूल में माध्यमिक स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त की और आजीविका के लिए रेलवे में क्लर्क की नौकरी कर ली |
                     पंडित जी की पत्नी बहुत कर्कश स्वभाव की थी फिर भी उन्होंने कभी भी अपने जीवन की इस कड़वाहट को सार्वजानिक व्यवहार में नहीं आने दिया |पंडित जी के जीवन का पूर्वार्ध भटकाव से भरा और प्रायः निरर्थक रहा |एक दिन किसी विद्वान के शास्त्र प्रवचन सुनकर उनके मन पर इसका बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी |मानो उनके भीतर छिपी प्रतिभा को प्रस्फुटन के लिए अनुकूल आधार-भूमि मिल गयी |इसके पश्चात् श्रुताभ्यास में निरंतर संलग्न होकर उन्होंने दिगंबर जैन परंपरा के शास्त्रों का गंभीर अध्ययन ,मनन किया और उनमें निपुणता प्राप्त करते हुए संस्कृत और प्राकृत भाषाओँ पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया। आर्ष ग्रंथों की सहायता से उन्होंने जैन सिद्धांत ,तत्वज्ञान ,दर्शन और न्याय को हस्तामलकवत कर लिया |
                    जैन दर्शन के ध्वजवाहक बनकर आपने यत्र-तत्र अनेक जैन पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया | ई.1892 में आपने पं. धन्नालाल जी के साथ मुंबई में दिगंबर जैन सभा की स्थापना की और ई.1899 में आपने इस सभा के तत्वावधान में जैन-मित्र पत्र का प्रकाशन शुरू किया। पंडित जी के संपादकत्व में जैनमित्र ने अखिल जैन समाज का पहरुआ बनकर न केवल उसे एक सूत्र में पिरोने का काम किया बल्कि उसकी अस्मिता को एक नया आयाम दिया |
                   एक बार जब पं० गोपालदास जी वरैया  की कीर्ति महाराजा छतरपुर के कानों में पड़ी तो नरेश ने उन्हें  छतरपुर बुलवाया तथा कुछ दिनों तक  उनके  सानिध्य में रहकर  धर्मदेशना ली । यह घटना इस शताब्दी के प्रथम दशक की है।  वरैया जी को विदाई देते समय छतरपुर नरेश ने उन्हें दो गाँव भेंट स्वरूप  दिये, परन्तु पण्डित जी ने विनम्रतापूर्वक कहा कि मैं धर्मोपदेश के प्रतिफल में कोई भेंट स्वीकार नहीं करता। छतरपुर के नरेश  वरैया जी की इस नि:स्पृहवृत्ति से बहुत अधिक प्रभावित हुए।
                   आपने कई सफल शास्त्रार्थ किये और अपनी वाग्मिता से अजैनों को भी मुग्ध कर दिया |उन्होंने अपनी विलक्षण मेधा से जैन न्याय और सिद्धांत की दुन्दुभी बजाते हुए जैन दर्शन की विमल कीर्ति पताका को फहराया और शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत बने |ई.1901 में दिगंबर जैन महासभा की स्थापना में भी आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है |आपने लगभग 10 वर्षों तक इस संस्था के सचिवीय दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया ।
                      मुरैना का जैन सिद्धांत संस्कृत महाविद्यालय आपकी कीर्ति का मुख्य स्तम्भ है |यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज भारतवर्ष में जितने भी जैन विद्वान् हैं उनमें से अधिकांश पंडित जी की शिष्य -प्रशिष्य परंपरा में हैं।समाज सेवा और शिक्षण कार्य में अत्यधिक व्यस्त रहते हुए भी वे अवकाश के क्षणों में चिंतन-मनन करते रहते थे जिसका प्रतिफलन 'जैन सिद्धांत दर्पण' ,'सुशीला' उपन्यास और 'जैन सिद्धांत प्रवेशिका' के प्रणयन के रूप में हमारे सामने है |इनमें से बहुप्रसारित जैन सिद्धांत प्रवेशिका जैन धर्म और दर्शन के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है ,जो एक पारिभाषिक कोष का काम देती है|
                         आपका सभी समुदायों के लोग बहुत समादर करते थे |ग्वालियर रियासत द्वारा आपको मानद मजिस्ट्रेट का पद प्रदान किया था |आप पंचायत परिषद् और चेम्बर्स ऑफ़ कोमर्स के भी सदस्य रहे | ई.1917 में मुरैना(म.प्र.)में यह दैदीप्यमान नक्षत्र सदा के लिए लुप्त हो गया।


शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

वैवाहिक विवाद

 वरहिया समाज में विवाह सम्बन्धी विवादों के दर्जनों मामले लंबे समय से अनसुलझे पड़े हैं।  दोनों पक्षों के लिए कष्टदायक होने के बावजूद दोनों पक्षों का अंहकार  उनके बीच रिश्तों में  कड़वाहट घोलता रहता है जो उनके किसी समझौते तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा है। दोनों पक्ष यदि विवेक और संयम से काम लें तो किसी मान्य समाधान तक पहुंचने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। इनमें से कुछ मामले तो न्यायालय में लंबित हैं और कुछ मामलों में द्विपक्षीय रिश्तों में ठंडेपन के कारण गतिरोध बना हुआ है। इनमे से किसी मामले लड़का पक्ष की गलती  है तो किसी मामले में लड़की पक्ष की ज्यादती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में लड़के और लड़की के बीच आपसी गलतफहमी, छोटे मोटे आरोप -प्रत्यारोप   नासमझी के कारण इतने तनावपूर्ण हो जाते हैं कि उनके मधुर रिश्तों में दरार पड़ जाती है जो उनके बीच अलगाव पैदा करती है।इसी स्थिति-परिस्थिति में विच्छेद की पृष्ठभूमि तैयार होती है। लेकिन मामले के तथ्यों को चाहे कितना तोड़ा-मरोड़ा जाए,मोटी सच्चाई समाज के लोगों के सामने आ ही जाती है। ऐसे में समाज के वरिष्ठ जनों की नैतिक जिम्मेदारी है वे ऐसे मामलों में अपने सामाजिक प्रभाव का उपयोग कर उनके समाधान के लिए यथासंभव प्रयास करें। शादी-विवाह तिजारत नहीं है इसलिए किसी भी पक्ष को सौदेबाजी करके अनुचित लाभ लेने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।हम सभी वरहिया जन एक परिवार हैं। इसलिए हमें समाज को एकजुट रखने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। समारोहजीवी समाज के धुरंधर नेताओं से यही मेरी विनम्र प्रार्थना है।

अंतर्जातीय विवाह

 वरहिया समाज में अन्तर्जातीय विवाह के मामलों में हाल के दिनों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि हमारी पढ़ी-लिखी लड़कियां तो अपेक्षाकृत अच्छी सामाजिक स्थिति वाले परिवारों में ब्याह रही हैं लेकिन लड़कों के लिए बहुएं हीनतर सामाजिक स्थिति वाले समुदायों और परिवारों से मेनेज करके लानी पड़ रही हैं।यह बड़ी दु:खद और विकट स्थिति है।इस सबके बावजूद आज भी बहुतेरे ऐसे हैं जो अपने लड़कों के विवाह की फ़िक्र में बूढ़े हुए जा रहे हैं।'महोजनो येन गत:स पंथा' यह लोकप्रसिद्ध है। वरिष्ठ जनों को लोग अपना आदर्श मानते हैं और वे उन्हीं के अनुसरित मार्ग का अनुगमन करते हैं। इसलिए वरिष्ठजन समाज में आदर्श प्रस्तुत करें और वर्जनीय क्रियाकलापों से विमुख रहें, ऐसी अपेक्षा करना गलत नहीं होगा। क्योंकि लोग एक दूसरे का उदाहरण देकर अपनी गलतियों को जस्टिफाई करते हैं । प्रगतिशीलता और ब्राडमाइंडेडनेस का हवाला देकर कुछ लोग तो कुछ भी कर गुजरने से गुरेज नहीं करते। अपनी क्रांतिदूत वाली छवि पर मुग्ध होते हुए खुद ही अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं। यही सूरतेहाल रहा तो समाज के अस्तित्व पर संकट खड़ा होना निश्चित है। सजातीय वर-वधू को प्राथमिकता मिलना चाहिए। विवाह के लिए लड़के लड़कियों की प्राथमिकता सूची में नौकरीपेशा के साथ ही व्यापारी वर्ग को भी तरजीह मिलना चाहिए। दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर सर्विस मेन से दूसरों को नौकरी या रोजगार देने में सक्षम व्यापारिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति कमतर नहीं होता।विरल स्थिति में ही विजातीय जैन समाज के वरवधू का विकल्प चुनना चाहिए। जड़ों से कटकर चीजें बेजान हो जाती हैं। प्रगतिशीलता की आधुनिकता की बयार में उड़ रहे और गर्द में हिचकोले खा रहे ,जड़ों से कटे लोगों से जमीन से दूर होने का दर्द पूछिए। वे भले ही कुछ न बताएं लेकिन उनका मौन उनकी पीड़ा को बयान कर देगा।यह चमन उजड़ने ने न पाए,यह नैतिक जिम्मेदारी उसके सुयोग्य मालियों की है। इसलिए आप सुधीजन विचार करें कि पंचकल्याणक महोत्सव, धार्मिक विधान- अनुष्ठान, मंदिर निर्माण आदि हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए या समाज का सुदृढ़ीकरण 🤔