शनिवार, 9 अप्रैल 2016

वरहिया जैन समाज के गौरव :श्री रामजीत जैन ,एड.

भंडारी  गौत्रोत्पन्न   श्री रामजीत जी  जैन |
जैन जगत को जिन्हनें दीं हैं कई अनूठी देन||

'वरहियान्वय'जैसी कृति जिनके श्रम का प्रतिफल है |
गौरवान्वित हो समाज ,रहा जिनका इस पर बल है ||

जिन्हने खोजा बिखरे सूत्रों को, कर अथक प्रयास |
अल्पख्यात वरहिया समाज को दिया प्रथम इतिहास ||

जिनकी लिखी दर्जनों कृतियाँ हुईं जैन जगत में चर्चित |
है  श्री सिद्धक्षेत्र गोपाचल  जैसी कृति संपूजित ,अर्चित ||

अखिल दिगंबर जैन जगत में मिला जिन्हें बहुमान |
वह ग्वालियर नगरी के रहवासी अभिभाषक श्रीमान ||

उनका महान अवदान भुलाया नहीं जा सकेगा |
हमसे उनका ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकेगा ||

                        ------- रचयिता  श्रीश राकेश जैन (लहार)

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

गुरु गोपालदास -महिमा 2


हे इन धूल भरे हीरों के  सुख सौभाग्य विधाता |
जैन जगत में धार्मिक शिक्षा पथ के नवनिर्माता ||

तुम अज्ञान अमा हर लाये,धर्म ज्ञान की ऊषा |
जैन भारती को दी तुमने मनोहारिणी  भूषा ||
ओ ज्ञानार्थी शरण तुम्हारी पहुँच बना अनुगामी |
हुआ वहीँ कुछ दिवसों में ही,ज्ञान कोष का स्वामी ||

धन्य शिष्य वे जिन्हें मिले गुरु तुमसे विद्यादाता |
हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता ||

कर शास्त्रार्थ विजय फहरायी तुमने जैन पताका |
पड़ा प्रभाव विरोधी दल पर भी तब वाद कला का ||
क्योंकि  नहीं थे तुम  जैनागम के कोरे  श्रद्धानी |
उसके  गूढ़  रहस्यों के भी अपितु रहे हो  ज्ञानी ||

अतः गौरवान्वित है  तुमसे यह जिनवाणी माता |
हे इन धूल भरे  हीरों के सुख  सौभाग्य  विधाता ||

आज स्वयं हो रहा तुम्हारे पद-युग पर नत माथा |
कविवाणी गा रही स्वयं ही तब उज्वल यशगाथा ||
क्योंकि मुरैना का विद्यालय दिया तुम्हीने दानी |
जो कि आज भी तब उपकारों की कह रहा कहानी ||

हम व्याख्यान करें क्या गुण का हे अनुपम व्याख्याता |
हे  इन धूल भरे  हीरों के  सुख  सौभाग्य  विधाता  ||

                                ------   रचयिता श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश',(नागौद)


गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

गुरु गोपालदास -महिमा


ओ स्यादवाद-सिद्धांत -निलय
ओ विद्यावारिधि अति अगाध |
वादीभकेशरी   ओ    दिग्गज
विद्वान्-शिरोमणि !निर्विवाद ||

ओ कर्मठ त्यागी ! ओ नैष्ठिक
ओ कुशल प्रवक्ता ! पत्रकार  !
ओ सफल सुलेखक !अध्यापक !
युगनिर्माता    साहित्यकार  ||

ओ जैन वांग्मय के   शोधक
अनुशीलनकर्ता   ज्ञानवान |
तुम परम संस्कृत भट्टारक
थे  सहृदयी  भावुक  महान ||

ओ महामना  !प्रतिभाशाली !
स्तम्भ जैन संस्कृति विशाल |
ओ परम दार्शनिक! सत्यनिष्ठ !
जिनवाणी सेवक !विशदभाल ||

मोरेना-संस्कृत-विद्यालय -
संस्थापक तुम ही दृढ़ प्रतिज्ञ !
दिन रात   गा  रहे यशोगान
स्नातक निकले जो परम विज्ञ ||

ओ सरस्वती  के  वरद  पुत्र !
ओ शास्त्रार्थ -विजयी महान |
ओ सफल समालोचक सेवक
निर्लोभी विजयी क्रोध  मान ||

ओ न्याय तर्क के वाचस्पति !
ओ चोटी के विद्वान्  एक !
अमृतमय वाणी सींच -सींच
पाया है तुमने  सद्विवेक ||

हित-मित-प्रियभाषी !निडर धीर
चारित्र मूर्ति , गौरव -निधान  !
निष्कपट दुराग्रह सदा त्याग
अपनाया तुमने पथ  महान ||

तुम निरभिमान पाखण्ड हीन
इन्द्रियजेता       कर्तव्यनिष्ठ !
सिद्धांत  पक्ष के   प्रतिपादक
निष्पक्ष समीक्षक  गुणगरिष्ठ ||

ओ मार्ग प्रदर्शक विद्ज्जन  !
ओ अग्रगणी नेता  समाज
गोपालदास गुरुवर्य  श्रेष्ठ  !
श्रद्धांजलि अर्पण तुम्हें आज ||

                           ----  रचयिता श्री अनूपचंद न्यायतीर्थ ,साहित्यरत्न (जयपुर)

मंगलवार, 8 मार्च 2016

समाजसेवी पन्नालाल जी जैन

पिता हकीम ताराचंद जी के दिलों की धड़कन और माता गौराबाई की आँखों के तारे ,सबके लाड़ले पन्नालाल जी का जन्म 25 मार्च सन 1934 में म.प्र. के शिवपुरी जिले के ग्राम मगरोनी में हुआ था |बालक पन्नालाल बहुत सौम्य,गंभीर स्वभाव के थे |समय के साथ उनकी यह सौम्यता  और गाम्भीर्य और पुष्ट होता चला  गया और उनके जीवन का स्थायी भाव बन गया |
                                                माता-पिता के आज्ञाकारी पन्नालाल जी बहुत धार्मिक स्वभाव के ,संस्कारी और अल्पभाषी रहे हैं |उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मगरोनी में ही हुई |उन दिनों मगरोनी में पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था न होने से उनकी पढ़ाई-लिखाई माध्यमिक स्तर तक ही संभव हो सकी लेकिन अनौपचारिक रूप से उनका अध्ययन-मनन आजीवन चलता रहा |
                                                                            आपका विवाह संवत् 2008 में वैशाख शुक्ला 3 को करहिया के श्री फूलचंद्र चौधरी की सुपुत्री बादामीबाई के साथ संपन्न हुआ |आपका दाम्पत्य जीवन सुखमय बीता |आपके चार पुत्रियाँ और एक पुत्र है |मगरोनी में ही आपकी लोहे की दुकान थी जो आपकी आजीविका का आधार रही |सामाजिक कार्यों में आपकी युवावस्था से ही गहरी रूचि रही जो आयु बढ़ने के साथ उत्तरोत्तर बढ़ती गई |जिससे आपकी एक निष्ठावान समाजसेवी के रूप में लोगों के मानस-पटल पर छवि अंकित हो गई |
                            गुलिया गौत्रोत्पन्न श्री पन्नालालजी पंडित गुरुवर्य गोपालदास जी कल्याण-कोष के संस्थापक अध्यक्ष रहे |कल्याण-कोष पन्नालाल जी की कल्पनाशीलता और समाज के प्रति उनके समर्पण का जीवंत दस्तावेज है |वह सन 2004 से 2010 तक इसके अध्यक्ष रहे और उसके उपरांत संरक्षक के रूप उसका मार्गदर्शन किया |आप 20 वर्षों तक नवयुवक मंडल ,मगरोनी के मंत्री रहे | आपने युवाओं को संगठित करने में अग्रणी भूमिका निभाई और नवयुवक मंडल की पहचान और सक्रियता को एक नया आयाम दिया |श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर ,कटरा मोहल्ला मगरोनी का आपने लम्बी अवधि तक कार्यभार सम्हाला |मगरोनी ग्राम पंचायत के भी आप सदस्य रहे हैं |श्री भट्टारक कोठी ,सोनागिर के उपाध्यक्ष के दायित्व का भी आपने दो कार्यकाल तक निर्वहन किया |आप उरवाहा सिद्धक्षेत्र ,नरवर ट्रस्ट के भी उपाध्यक्ष रहे हैं |अखिल भारतीय दिगंबर जैन महासभा के आप सदस्य रहे हैं |आपकी आतिथ्य-प्रियता और सौजन्य से हर व्यक्ति सहज ही अभिभूत हो जाता था |वह बहुत स्नेहशील व्यक्ति थे |27 फरवरी 2016 को क्रूर काल ने अचानक  उन्हें हम से छीन लिया ||

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

सराक जैन

प्राचीन काल में भारत के प्रायः सभी भागों में ,विशेष रूप से उत्तर भारत में जैन धर्म के अनुयायियों की काफी बड़ी संख्या रही है |विहार ,झारखण्ड ,उड़ीसा ,बंगाल आदि प्रदेश जो पार्श्वनाथ और वर्धमान महावीर की कर्मस्थली रहे हैं ,में उनके अनुयायियों की बहुत बड़ी संख्या थी |
                         कालांतर में जब राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं और जैन संघ की शक्ति और प्रभा क्षीण हुई तो अनेक प्रकार के प्रलोभनों और दवाबों के चलते बड़ी संख्या में यहाँ के लोगों ने धर्म-परिवर्तन कर लिया |प्रकट रूप से तो ये लोग जैन मत से विमुख हो गये लेकिन अवचेतन रूप से जैन मूल्यों को अपने जीवन-व्यवहार में आत्मसात किये रहे |सैकड़ों वर्ष बाद भी ये अध्यात्मिक मूल्य उनके आचार-विचार में आज भी शामिल हैं |तमिलनाडु के नैनार,उत्तराखंड के डिभरी,मेदनीपुर के सदगोप व बिहार ,झारखण्ड ,उड़ीसा ,बंगाल में ये लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं और सराक नाम से जाने जाते हैं |पार्श्वनाथ को अपने कुलदेवता के रूप में पूजने वाले इन लोगों की 6-7 लाख की आबादी इन क्षेत्रों के लगभग 500 ग्रामों में निवासरत हैं ,जो आपने नाम के साथ सराक शब्द जोड़ते हैं ,जो वास्तव में श्रावक शब्द का ही अपभ्रंश है |
                   ये वास्तव में प्रच्छन्न जैन ही हैं क्योंकि इनके आचार-विचार ,मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों में जैन मतावलंबियों के आचार-विचार,मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों की ही प्रतिच्छवि ही दिखती है |सराक जाति के गौत्र जैन तीर्थंकरों के नाम पर,जैसे आदिदेव ,शांतिदेव,अनंतदेव ,धर्मदेव आदि मिलते हैं ,जो जैन परंपरा से इनकी निकटता की द्योतक है |ये पूर्ण शाकाहारी और अहिंसक हैं |सूर्योदय के पूर्व और सूर्योदय के पश्चात् भोजन नहीं करते और छानकर पानी पीते हैं |उदुम्बर यानी गूलर,पीपल आदि का सेवन नहीं करते |शौच के कपड़े बदले बिना किसी को नहीं छूते और छानकर पानी पीते हैं और बिना स्नान किये भोजन ग्रहण नहीं करते |स्वजाति में ही विवाह सम्बन्ध करने वाले इस समुदाय में विधवा विवाह परंपरा से वर्जित है |सराक समाज के उन्नयन के लिए अनेक जैन संस्थाएं आगे आई हैं और इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं |मुनि -श्री ज्ञानसागर जी ने तो इसे अपने जीवन का  एक मिशन ही बना लिया है ||