शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

जड़ता


 बरसों से बैठे हैं जो पालथी मारकर ,
उनका गुण संकीर्तन सारे जन करते हैं।


किसमें साहस,उनकी ओर उठाए उंगली,
नाम जीभ पर भी लाने भर से डरते हैं।।


जो छक आए हैं मधुरस उनके घर जाकर
वे समाज में उनका ही जप उच्चरते हैं।


 फिरते है जो मल्ल,शूरमा ताल ठोकते
वे भी उनसे आंख मिलाने से डरते हैं।


आएगा बदलाव भला फिर कैसे, बोलो
दशकों बीत चुके हैं अब तो आंखें खोलो।

गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

चुनाव


  आने वाला है चुनाव,सो बिछने लगीं बिसातें/लगे बिठाने वे लोगों के मन में, अपनी बातें।।

सबकी कोशिश है,अपनी लॉबी ही चुनकर आए/ यही सोच सबने ही हाथी, घोड़े,ऊंट सरजाए।।

उनका सिक्का चले इसी कोशिश में सारे लोग/करने लगे किंगमेकर पटु-बुद्धि का उपयोग।।

लगे दौड़ने सरपट फिर से अश्वमेशके अश्व/ क्योंकि उनको ही रखना है अपना धुर वर्चस्व।।

क्यों?


 क्यों समाज में दिखते ,कुछ ही चेहरे हैं।
एक जगह क्यों हम ,बरसों से ठहरे हैं।।
 

सुनकर भी अनसुना कर रहे प्रश्नों को
जानबूझकर बने हुए क्यों बहरे हैं।।


 यह सवाल उठता है बरबस ही मन में,
कुछ सर पर ही  सजते क्यों ये सेहरे हैं।
 

कुछ कहने की गुस्ताखी करने पर ,ये
बैठा देते उस पर सौ-सौ पहरे हैं।


क्यों समाज में दिखते, कुछ ही चेहरे हैं
एक जगह क्यों हम ,बरसों से ठहरे हैं।।