गुरुवार, 24 जुलाई 2014

वरहिया जैन


शिवपुरी जिले का नरवर गढ़ |
जिसका  प्राचीन  दुर्ग   सुदृढ़ ||
संस्थापक जिसके राजा नल |
जिनकी फैली है कीर्ति विमल ||
नृप श्रेष्ठ  निषध के  एकमेव |
वनराज सिंह है ज्यों स्वयमेव ||
जिनकी  पौराणिक   गाथाएं |
जनमानस  में  गायीं  जाएँ ||
उनके  वंशज  श्री  सूर्यसेन ,
गंभीर व्याधि से ग्रस्त हुए |
शुद्धनपुर नगरी में रहकर ,
स्नान मात्र से स्वस्थ हुए ||
उनके सुत वीरमचन्द्र देव का ,
हिंसा से मन क्लान्त हुआ |
अपनाकर जैन धर्म का पथ,
उनका भटका मन शांत हुआ ||
उनके  ही  सतत  प्रयासों  से,
सोनागिर  में  चंदाप्रभु   के ;
मंदिर  का शुभ निर्माण हुआ |
सारा जीवन ऋषि तुल्य जिया,
अंततः   वरारगढ़  में   आकर ;
 उनका  फिर महाप्रयाण हुआ ||
श्री   वीरमचन्द्र  देव  से   ही   ,
यह जाति 'वरहिया ' ख्यात हुई |
'हैं  श्रेष्ठ  ह्रदय वाले  जो जन' ,
इस भांति जगत विख्यात हुई ||
हम  सभी  'वरहिया   जैन'  ,
उन्हीं की धर्मनिष्ठ संतानें हैं |
संकल्प  पूर्वजों  के  पावन ,
  मन में  अपने  जो  ठाने हैं ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें