सोमवार, 24 नवंबर 2014

समाजसेवी :लालमणि प्रसाद जैन


लम्बी कद काठी व गाम्भीर्य ,सहजता,और मिलनसारिता के सजीव विग्रह पलैया गौत्रोत्पन्न लालमणि प्रसाद जैन ,जिन्हें लालमन जी के नाम से प्रायः लोग जानते हैं -का जन्म ईस्वी सन 1937 में भाद्रपद शुक्ला षष्ठी को ग्वालियर जनपद के करहिया ग्राम में हुआ |आपके पिता का नाम श्री लखमी चन्द्र वरहिया व माताश्री का नाम दक्खो बाई है |दुर्भाग्यवश आप पितृ-स्नेह से वंचित रहे क्योंकि आपके जन्म के 2 मास पूर्व ही आपके पिता का देहांत हो गया था | आपका लालन-पालन आपके ताऊ श्री भगवान लाल जी वरहिया ने किया और अपना पुत्रवत स्नेह दिया |मणि जी के पूर्वज उम्मेदगढ़ के रहने वाले हैं जो आजीविका की तलाश में पहले आरोन और बाद में करहिया आकर बस गये |लेकिन आपकी किशोरावस्था में ही आपके ताऊ भगवान लाल जी का भी स्वर्गवास हो गया और उनका स्नेह भरा हाथ भी आपके ऊपर से उठ गया |जिसके चलते गृहस्थी का कठिन बोझ आपके नाजुक कन्धों पर आ गया |इन विषम परिस्थितियों में आप माध्यमिक स्तर तक ही अपनी पढ़ाई पूरी कर सके |लेकिन बाद में कुछ लोगों की तानाकशी से विचलित होकर आपने आगे पढ़ने का निश्चय किया और सन 1978 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और विशारद किया |आप काफी प्रत्युत्पन्न मति है |गायन के अलावा साहित्य में भी आपकी गहरी अभिरुचि है |अध्ययनशील होने के साथ ही आप रचनाधर्मी भी है |मणि उपनाम से आपने कई रचनाएँ की हैं जो यत्र-तत्र पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहीं हैं |आपने 'वरहिया जैन जाग्रति 'पत्रिका का संपादन भी किया |इसके अतिरिक्त आपने उपन्यास भी लिखे हैं ,जो अप्रकाशित हैं |आपकी वक्तृता के तो सभी कायल हैं |आप अपनी वाग्मिता  से अपने विरोधियों को भी सहज ही में अभिभूत और निरुत्तर कर देते हैं | सामाजिक फलक पर आपकी सक्रियता निरंतर रही है |करहिया जैन मंदिर के मंत्री के रूप में आपने लगभग 15 वर्षों तक अपने दायित्व का निर्वहन किया |श्री सोनागिर सिद्धक्षेत्र संरक्षिणी सभा के सदस्य रहे व भट्टारक चंद्रभूषण संस्थान ,सोनागिर के मंत्री और अध्यक्ष के रूप में लम्बे समय तक अपने कार्यभार का निर्वहन किया |आप अखिल भारतीय दिगंबर जैन महासभा के आजीवन सदस्य हैं |श्री गोपालदास जैन सिद्धांत महाविद्यालय ,मुरैना की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं व अखिल भारतीय वरहिया महासभा के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे हैं |विभिन्न पंचकल्याणकों के सफल आयोजनों में आपकी प्रभावी और सहयोगी भूमिका रही है |
                       राजनीतिक फलक पर भी आपकी सक्रियता रही है |तत्कालीन मध्यभारत के मुख्यमंत्री बाबू तख्तमल जैन का आपको राजनीतिक सानिध्य प्राप्त रहा |आप कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं |
            आजीविका के लिए आपने सन 1953 में सभराई ग्राम में किराने की दुकान शुरू की और इसके साथ ही व्यापारिक क्षेत्र में पदार्पण किया और इसके दो वर्ष पश्चात् ही किराने का थोक कारोबार व बजाजी का काम किया |सन 1967 में आपने ग्वालियर में सर्राफा बाजार में पहले साझीदारी में और फिर बाद में स्वतन्त्र रूप से सोने-चांदी का कारोबार शुरू किया ,जो अब तक जारी है |
          आप की सहधर्मिणी का नाम श्रीमती सुशीला बाई है |जिनका स्वर्गवास हो चुका है |आपके दो पुत्र और चार पुत्रियाँ हैं | आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए गृहस्थ-साधु का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।पनिहार में प्रवर्तित नवीन तीर्थ को विकसित करने में आपका उल्लेखनीय योगदान रहा है। आप वरहिया जैन समाज के विवादित लेकिन सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं |

सोमवार, 10 नवंबर 2014

सिंघई फूलचंद्र जैन


शमशाबाद ,आगरा जनपद का एक प्रमुख क़स्बा है |यहाँ वरहिया जैन समुदाय के लगभग पैंतीस-चालीस परिवार निवास करते हैं |ये सभी प्रायःव्यवसायी हैं और आनुपातिक रूप से  यहाँ के व्यापार के एक बड़े भाग पर इनका नियंत्रण है |सिंघई फूलचंद्र जी भी इन्हीं में से एक हैं ,जो यहाँ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं |सिंघई फूलचंद्र जैन का जन्म 16 जनवरी सन 1934 में शमशाबाद में हुआ |आपके पिता का नाम सिंघई प्यारेलाल जैन व माता का नाम श्रीमती कटोरी बाई जैन है |
                                   सिंघई प्यारेलाल जी वरहिया का परिवार तीन-चार पीढ़ी पहले ग्वालियर जनपद के बरौआ गाँव से आकर शमशाबाद में बस गया और इसी को अपनी कर्मस्थली बना लिया |
                                   आपकी प्रारंभिक शिक्षा शमशाबाद में हुई |मेट्रिक तक पढ़ाई करने के बाद ही आपने पढ़ाई छोड़ दी और अनाज के कारोबार में अपने पिता का हाथ बंटाने लगे |यह वह समय था जब आपका सामना जीवन की कड़वी सच्चाइयों से हुआ |बेहतर आजीविका की तलाश में आपने कई प्रयोग किये और बहुत कड़ा परिश्रम व संघर्ष किया |लगन,दूरंदेशी और परिश्रम यही आपकी जीवन-यात्रा का पाथेय रहा है ,जिसने आपको एक सफल उद्यमी के रूप में स्थापित किया |
                                 21वर्ष की अवस्था में सन 1955 में जौरा निवासी श्री हरप्रसाद जैन की पुत्री श्रीमती कमला बाई जैन के साथ आपका विवाह संपन्न हुआ |आपका वैवाहिक जीवन काफी सुखमय रहा |आपके पांच पुत्र और तीन पुत्रियाँ हुईं |
                                 फूलचंद्र जी की छात्र जीवन से ही राजनीति में गहरी रूचि रही |स्वाधीनता संग्राम में भी आपने अपनी भागीदारी निभाई |स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आप भारतीय जनसंघ से जुड़े और आजीवन उससे जुड़े रहे |आप नवीकृत जनसंघ याने भाजपा की नगर इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं |सामाजिक फलक पर भी आपकी सक्रियता रही है |वरहिया जैन महासभा के कोषाध्यक्ष के रूप में आपने अपने दायित्व को कुशलता से निभाया है |कृषि उपकरण और ट्रेक्टर्स पार्ट्स कारोबारी के रूप में आपने काफी ख्याति अर्जित की है |वर्ष 1991 में आपने शमशाबाद में एक आधुनिक मेरिज-हाउस की नींव रखी ,जिसका नामकरण अपनी धर्म-पत्नी श्रीमती कमला बाई जैन के नाम पर 'कमला-पैलेस 'किया |धर्म के प्रति आजीवन आपकी गहरी रूचि रही है |तीर्थाटन के लिए आप अभी भी तत्पर रहते हैं |आपकी मृदुता और सौम्यता से कोई भी सहज ही में अभिभूत हो जाता है |78 वर्ष की उम्र में भी आप काफी सक्रिय रहते हैं |यह सक्रियता आपके व्यक्तित्व का सबसे प्रेरक पक्ष है |

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

वरहिया जैन


शिवपुरी जिले का नरवर गढ़ |
जिसका  प्राचीन  दुर्ग   सुदृढ़ ||
संस्थापक जिसके राजा नल |
जिनकी फैली है कीर्ति विमल ||
नृप श्रेष्ठ  निषध के  एकमेव |
वनराज सिंह है ज्यों स्वयमेव ||
जिनकी  पौराणिक   गाथाएं |
जनमानस  में  गायीं  जाएँ ||
उनके  वंशज  श्री  सूर्यसेन ,
गंभीर व्याधि से ग्रस्त हुए |
शुद्धनपुर नगरी में रहकर ,
स्नान मात्र से स्वस्थ हुए ||
उनके सुत वीरमचन्द्र देव का ,
हिंसा से मन क्लान्त हुआ |
अपनाकर जैन धर्म का पथ,
उनका भटका मन शांत हुआ ||
उनके  ही  सतत  प्रयासों  से,
सोनागिर  में  चंदाप्रभु   के ;
मंदिर  का शुभ निर्माण हुआ |
सारा जीवन ऋषि तुल्य जिया,
अंततः   वरारगढ़  में   आकर ;
 उनका  फिर महाप्रयाण हुआ ||
श्री   वीरमचन्द्र  देव  से   ही   ,
यह जाति 'वरहिया ' ख्यात हुई |
'हैं  श्रेष्ठ  ह्रदय वाले  जो जन' ,
इस भांति जगत विख्यात हुई ||
हम  सभी  'वरहिया   जैन'  ,
उन्हीं की धर्मनिष्ठ संतानें हैं |
संकल्प  पूर्वजों  के  पावन ,
  मन में  अपने  जो  ठाने हैं ||

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

करहिया ग्राम :एक परिचय


करहिया ग्राम ग्वालियर देहात (गिर्द)जिले में ग्वालियर से 60 किलोमीटर की दूरी  पर स्थित है |विक्रम संवत 1632 में परमार वंशी क्षत्रिय खड़गराय ने नरवर के तत्कालीन नरेश गजसिंह कछवाह की अनुज्ञा प्राप्त कर यह ग्राम बसाया था जो विन्ध्यघाटी में नरवर से 16 मील की दूरी  पर स्थित है |गाँव की सुरक्षा के निमित्त इसके चारों ओर पक्का परकोटा (सुरक्षा प्राचीर) था ,जो अब नहीं है लेकिन उसके भग्नावशेष आज भी जहाँ-तहाँ मौजूद हैं |गाँव की बसाहट के समय से ही वरहिया जैन समुदाय के लोग यहाँ बड़ी संख्या में निवास करते हैं ,जिन्हें सभी समुदायों में आदर और बहुमान प्राप्त है |ये ही लोग यहाँ की अर्थ-व्यवस्था के वास्तविक सूत्रधार हैं |
              व्यापार और वाणिज्य में कुशल होने के साथ-साथ वरहिया लोग उदभट योद्धा भी रहे हैं |करहिया के परमार शासकों के दीवान वरहिया समुदाय के कुम्हरिया परिवार से थे जिन्होंने विक्रम संवत 1824 में भरतपुर के जाट योद्धा जवाहर सिंह और करहिया के परमारों के बीच  हुए संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और शत्रुओं से जमकर लोहा लिया |जिसमें उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर परमारों की जीत की नींव रखी |इस युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले कुम्हरिया परिवार के बलिदानियों के स्मारक छतरी के रूप में आज भी यहाँ मौजूद हैं |जो 'जे कम्मे शूरा,ते धम्मे शूरा 'की उक्ति को चरितार्थ करते हैं |
             यहाँ के वरहिया जन बहुत धार्मिक ,सहृदय और परम्परानिष्ठ रहे हैं |यहाँ कुम्हरिया (चौधरी व दीवान ),धनोरिया ,पलैया ,रोंसरया प्रभृति अनेक गौत्रों के लोग परस्पर सौहार्द के साथ रहते और धर्म पालन करते हैं |ग्वालियर के निकटवर्ती पार गाँव के रहने वाले कुम्हरिया परिवार व रायपुर गाँव के निवासी धनोरिया परिवार करहिया की बसाहट के समय से ही यहाँ आकर रहने लगे थे और यहाँ की उन्नति में सहभागी बने |
              पार गाँव से आये कुम्हरिया लोगों ने यहाँ खुशालीराम दीवान की अटारी में अपने साथ लाई जिन प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर एक चैत्य की स्थापना की | बाद में वृजलाल जी दीवान ने अपने पूर्वज कमल सिंह दीवान का मकान मंदिर निर्माण हेतु विक्रम संवत 1922 में वरहिया समाज को दान में दिया |जहाँ सं.1949 में जैन समाज ने  एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया ,जिसमें सात वेदियाँ हैं |परमसुख ,लखमीचंद धनोरिया ने भी इस मंदिर में एक वेदिका की स्थापना कराई व धर्मशाला का निर्माण कराया ।


              वरहिया-विलास के विद्वान् लेखक पं.लेखराज वरहिया ,श्रीपाल चरित के रचयिता कविवर परिमल ,रविव्रत कथा ,सोनागिर पच्चीसी ,चन्द्र प्रभु पूजा इत्यादि कृतियों के प्रणेता निहाल चन्द्र वरहिया इसी गाँव के रत्न हैं जिनकी कीर्ति सभी ओर फैली है |समाजसेवी लालमणि प्रसाद जैन व क्षुल्लक पूज्यसागर (लौकिक नाम-सुनहरी लाल धनोरिया )भी इसी गाँव के निवासी हैं |यहाँ के रहने वाले दर्जनों परिवार आजीविका के सिलसिले में डबरा और ग्वालियर आकर बस गए हैं लेकिन अपनी पितृभूमि के साथ उनका जुड़ाव और लगाव आज भी गहरा है और गाँव में होने वाले धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में उनकी पूरी भागीदारी रहती है |

रविवार, 23 मार्च 2014

भट्टारक श्री चंद्रभूषण संस्थान,सोनागिर


जैन मठों और संस्थानों के प्रबंधन का दायित्व जिन यति तुल्य गरिमाओं के कन्धों पर रहा है, वे जैन परंपरा में भट्टारक के नाम से विश्रुत हैं | सुदूर अतीत में भट्टारक भी जैन मुनियों की भांति नग्न रहते थे लेकिन कालांतर में वस्त्र धारण करने की प्रथा आरंभ हुई | 'णग्गो विमोक्ख मग्गो " के आदर्श पर बल देने व दिगम्बरत्व को पूज्य मानने के कारण भट्टारकों  के लिए भी मृत्यु का समय निकट आने पर दिगम्बरत्व धारण कर संलेखना व्रत ग्रहण करने का विधान है |
      मंदिरों और मठों के प्रबंधन जैसे लौकिक कार्यों से जुड़े होने के कारण भट्टारकों का यति स्वरूप धीरे-धीरे लुप्त होकर शासकों की भांति राजसी स्वरूप ग्रहण करने लगा और उनका पट्टाभिषेक भी राजोचित ढंग से बड़ी भव्यता के साथ आयोजित होने लगा |
       भट्टारकों के कार्य क्षेत्र में -मूर्ति प्रतिष्ठा ;मंदिरों ,मठों का सुचारू प्रबंधन ;प्राचीन आर्ष ग्रंथों का संग्रहण,संरक्षण ;जैन साहित्य ,कला ,संगीत आदि का संवर्धन जैसे विषय शामिल रहे हैं |
        समूचे भारतवर्ष में भट्टारकों के कई पीठ स्थापित रहे हैं जिनमें श्रमणगिरि सोनागिर स्थित भट्टारक पीठ भी एक है |जिस पर प्रमुखतः बलात्कार गण शाखा का वर्चस्व रहा है |अनेक यशस्वी  भट्टारकों से सुशोभित इस पीठ के अंतिम भट्टारक श्री चंद्रभूषण जी, जो वरहिया समुदाय से  थे -वि.सं.2001 में अभिषिक्त हुए ,जिनका वि.सं.2031 में देहांत हो गया |योग्य शिष्य न मिलने के कारण भट्टारक श्री चंद्रभूषण जी ने अपने जीवनकाल में ही वरहिया समाज के प्रमुख लोगों से विमर्श कर अपने नियंत्रणाधीन परिसंपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक प्रबंधकारिणी कमेटी का गठन किया  था  और जिसके वे अध्यक्ष रहे |भट्टारक जी के निधन के पश्चात् से  श्री दिगंबर जैन वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी सोनागिर इस दायित्व का सुचारू निर्वहन कर रही है | वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी के प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों में चन्द्र चौक स्थित विशाल भट्टारक कोठी जिसमें मंदिर नं.8 व 9 तथा भगवान शांतिनाथ का मंदिर स्थित है ,आमौल वालों की धर्मशाला ,दक्खोबाई का मंदिर नं.11 ,मुन्नालाल धनोरिया करहिया वालों का मंदिर नं .12 ,मंदिर नं.17 व उससे संलग्न धर्मशाला प्रमुख रूप से शामिल है |
               अपने गठन के समय से ही वरहिया जैन समाज की अनेक सेवाभावी गरिमाओं का सहयोग और समर्थन श्री दिगंबर जैन वरहिया प्रबंधकारिणी कमेटी सोनागिर को प्राप्त रहा है |जिनके कुशल निर्देशन में अनेक उपलब्धियां हुई हैं |
               वर्तमान प्रबंधन द्वारा मंदिर नं.12 का पुनर्निर्माण  कर उसे भव्य स्वरूप प्रदान किया गया है |भट्टारक कोठी स्थित नवीन धर्मशाला में 46 कमरों का निर्माण कराया गया है |मंदिर नं.17 का जीर्णोद्धार कर उसके प्रथम तल पर भी 6 कमरों का जीर्णोद्धार किया गया है |इसी मंदिर के दूसरे तल पर स्थित भगवान चंद्रप्रभु के मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है |आमोल वाली धर्मशाला में यात्री भोजनालय कक्ष का निर्माण कराया गया है ,जहाँ नाममात्र के शुल्क पर सुरुचिपूर्ण भोजन उपलब्ध कराया जाता है |इसी धर्मशाला के दूसरे तल पर 6 कमरों का नवीन निर्माण कराया गया है |इसके अतिरिक्त मुनियों व त्यागी, व्रतियों के निमित्त नियमित चौके की व्यवस्था भी इस कमेटी द्वारा की जा रही है |शांतिनाथ जिनालय के सामने ऊपरी मंजिल स्थित बारादरी प्रांगण में 6 कमरों का निर्माण कराया गया है व मंदिर नं.9 के तीसरे तल पर एक हाल का निर्माण हुआ है|भट्टारक कोठी स्थित सभी जिनालयों के शिखरों का जीर्णोद्धार भी कमेटी द्वारा कराया गया है |

            भट्टारक कोठी स्थित मंदिर नं.8 में बहुमूल्य रत्नों की चौबीसी स्थापित है ,जो एक अप्रतिम संग्रह है |यहाँ स्थित शास्त्र भंडार में अति प्राचीन 925 ग्रंथों का बहुमूल्य ,दुर्लभ संग्रह है जिसमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित है |मनहर देव के नाम विख्यात भगवान शांतिनाथ की 16 फीट उत्तुंग प्रतिमा जो श्रेष्ठी पाड़ा शाह द्वारा प्रतिष्ठापित 16 अतिशयकारी प्रतिमाओं में से एक है और मूलतः चैत्य ग्राम (करहिया) में स्थापित थी -यहाँ विराजित है |2 वर्ष पूर्व पंचकल्याणक महामहोत्सव का गरिमापूर्ण आयोजन वरहिया जनों द्वारा किया गया ,जिससे अभूतपूर्व धर्म प्रभावना हुई |
        इन अनेक उल्लेख्य उपलब्धियों के बावजूद यहाँ अभी बहुत से कार्य किये जाने शेष हैं |जिसके लिए लोगों से  उदार सहयोग की अपेक्षा है |कतिपय जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मैं श्री दिगंबर जैन वरहिया कमेटी ,सोनागिर के निवर्तमान पदाधिकारी श्री रामजीलाल जैन व श्री रवीन्द्र जैन का आभारी हूँ |

शुक्रवार, 21 मार्च 2014

अस्मिता का आसन्न संकट

घटते लिंगानुपात याने लड़कों की तुलना में लड़कियों की कम संख्या के चलते एक विकट सामाजिक संकट पैदा हुआ है |जिसके फलस्वरूप विवाह की देहली सीमा पर और उसके पार खड़े वरहिया जैन समुदाय के जिन युवाओं का गृहस्थी बसाने का सपना टूटकर बिखर चुका है ,वे अपने भविष्य को लेकर बेहद तनावग्रस्त और उद्विग्न हैं |इन छिके हुए (समाज में विवाह से बहिष्कृत )युवाओं ,जिनकी एक बड़ी संख्या है -के परिजनों का अपने बच्चों के गृहस्थ  जीवन को लेकर चिंतित होना उचित और स्वाभाविक है |उन्हें इसका एक ही सहज समाधान नज़र आता है -विजातीय समुदायों की कन्याओं को अपनी बहू बनाकर लाना |चूँकि सभी सवर्ण समुदाय घटते लिंगानुपात की समस्या से जूझ रहे हैं इसलिए लड़कियों की कमी इतर समुदायों में भी है | दूसरे ,स्वजाति में विवाह सम्बंध के आग्रह के चलते लोग सामान्यतः  विजातीय समुदायों में विवाह सम्बंध जोड़ने में हिचकिचाते हैं और विवशता में ही यह विकल्प चुनते हैं |किन्तु पिछड़े समुदायों में जहाँ लिंगानुपात की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है ,लड़कियों की बहुलता है |इसलिए सब ओर से नाउम्मीद लोग आज कुलीनता का किसी भी सीमा तक अतिक्रमण करने को तैयार हैं और उड़ीसा ,बिहार,बंगाल के पिछड़े समुदायों की विजातीय अजैन कन्याओं को ,जिन्हें उनके माता-पिता निर्धनता के कारण उनका परिणय करने में समर्थ नहीं है -दलालों के माध्यम से खरीद कर अपनी बहू बनाकर घर ला रहे हैं |ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं |लेकिन यहाँ यह बात विचारणीय है कि नितांत भिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में पली-बढ़ी और विपरीत आहार-चर्या वाली कन्याओं के साथ तालमेल बैठा पाना दुष्करता की सीमा तक कठिन होगा ,साथ ही उन पर विश्वास कर पाना भी सहज नहीं होगा |कहीं वे मौका पाते ही कीमती माल-असबाव के साथ चम्पत न हो जायें,यह चिंता भी बेचैनी का सबब  बनेगी |इसलिए चाबी-ताले में कैद करके याने  सतत निगरानी में रखी जाने वाली इन क्रीत बहुओं की आमद का सिलसिला थमना चाहिए अन्यथा आने वाले समय में वरहिया समाज का स्वरूप भ्रष्ट होकर अपने नग्न विकृत रूप में सामने होगा और हम किंकर्तव्यविमूढ़ होंगे |
                                                        मेरी दृष्टि में इस विकट समस्या का एक ही उपयुक्त समाधान है कि इन बहिष्कृत (छिके हुए )विवाहार्थी युवाओं के निमित्त जैन संस्कारों से संस्कारित कन्याओं को अपनी बहू बनाकर घर लायें ताकि उनके साथ हमारा किसी प्रकार का कोई सांस्कृतिक टकराव न हो और धर्मनिष्ठता का भी सम्यक निर्वहन हो ||विजातीय जैन समुदायों के अलावा जैन संस्थाओं द्वारा संचालित अनाथालयों और आश्रमों में रहने वाली लड़कियाँ भी इस निमित्त सुपात्र हो सकती है |क्योंकि जैन संस्कारों से संस्कारित होने के कारण वे धर्मनिष्ठ होंगी और उनके साथ तालमेल बैठाने में सहजता होगी |भले ही यह सामाजिक विचलन है लेकिन इन परिस्थितियों के मद्देनज़र यह आज की एक बड़ी आवश्यकता और आपद-धर्म बन गया है |ऐसा करने से हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन-मूल्य व समाज की निरंतरता दोनों कायम रहेंगी और साथ ही हमारी सामाजिक अस्मिता अक्षुण्ण रहेगी अन्यथा एक समाज के रूप में हमारी पहचान ही लुप्त हो जाएगी ||

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

वरहिया जैन समाज के गौरव : राजमल वरैया


म.प्र. के रतलाम जिले में स्थित जावरा, मालवांचल का एक प्रमुख क़स्बा है |सम्प्रति यही क़स्बा श्री राजमल जी वरैया का गृहनगर है |जावरा में राजमल जी वरैया किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं | आपके पिता भंडारी गौत्रोत्पन्न श्री मुन्नालाल जी वरहिया मुरैना जिले के सुमावली ग्राम के निवासी थे जो कालांतर में आजीविका की तलाश में इंदौर आये और वहां कुछ दिन निवास करने के पश्चात् रतलाम जिले के जावरा कस्बे में स्थायी रूप से बस गए |यहीं पर राजमल जी का जन्म और लालन-पालन हुआ |भले ही आपने औपचारिक रूप से माध्यमिक स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त की लेकिन स्वाध्याय मनन में वे आजीवन संलग्न रहे हैं |
                                                                                                                                         प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी ,सरल-चित्त श्री राजमल जी वरैया की एक अग्रणी समाजसेवी के रूप में पहचान रही है |आपका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ गहरा जुड़ाव रहा है | जावरा शहर में भारतीय जनसंघ के पुरस्कर्ताओं में आपका नाम शीर्ष पर आता है | आप मालवांचल की अनेक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं | आपके व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण है जिसके कारण आपके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता |आपकी आतिथ्यप्रियता का लोग उदहारण देते हैं | मुझे भी उनका सानिध्य और सौजन्य प्राप्त हुआ है |उनकी सरलता और गाम्भीर्य से कोई भी अभिभूत हो जाता है |ऊँचे लम्बे कद काठी और सौम्य व्यक्तित्व के धनी श्री राजमल जी वरैया एक जुझारू राजनीतिक कार्यकर्ता और सहृदय समाजसेवी हैं |उनकी यह सक्रियता आज भी कायम है |उनका मालवांचल में बहुत बहुमान है | उनका संघर्षों से भरा कर्मठ जीवन युवाओं के लिए एक प्रेरणा है |

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

घटते लिंगानुपात के बरक्स बढ़ता सामाजिक विचलन


घटते लिंगानुपात के चलते वरहिया जैन समुदाय इस समय गंभीर सामाजिक संकट से गुजर रहा है जिसका कारण विवाहार्थी लड़कों की तुलना में विवाहार्थी लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय कमी होना है |योग्य वर की तलाश में वरहिया जैन समुदाय की कई लड़कियों का विजातीय जैन समुदायों  के लड़कों के साथ विवाह होने से यह स्थिति और बदतर हुई |हाँलाकि कन्या के अनुरूप योग्य वर की तलाश करना हर अभिभावक की चाहत रहती है | इसलिए विजातीय जैन समुदायों में विवाह सम्बन्ध जोड़ना गलत नहीं कहा जा सकता बल्कि यह समय की मांग है |लेकिन विवाहार्थी लड़कियों की घटती उपलब्धता से जो गंभीर सामाजिक संकट पैदा हुआ है ,उससे विवाह की देहली-सीमा पर खड़े विवाह योग्य लड़को के जीवन में घोर हताशा घिर रही है और वह जीवन संगिनी की तलाश में विजातीय,अजैन और सामाजिक रूप से हीन (?) समुदायों की ओर रुख कर रहे हैं |हाल ही में ऐसे कई विवाह हुए हैं और कई प्रत्याशित हैं |जिन घरों में ऐसे विवाहार्थी लडके हैं उनके अभिभावकों का उनके प्रति चिंतातुर होना स्वाभाविक है और उनका अपनी संतानों के भविष्य को सुखमय और सुरक्षित करने के लिए किसी भी सीमा तक जाने की यह कोशिश उनके प्रति सहानुभूति तो पैदा करती है लेकिन यह कितना उचित है ,एक विचारणीय प्रश्न है |
                                    यहाँ संदर्भित प्रतिलोम विवाहों ,जिनमें कथित रूप से वधू-मूल्य चुकाया जाता है या जो किसी अंधे प्रेम प्रसंग की परिणति होते हैं -में लड़की के भिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि का होने के कारण परिवार में उसके साथ तालमेल में कठिनाई होती है, जो इस समस्या से जुड़ा एक महत्वपूर्ण बिंदु है | इसके अतिरिक्त लड़की के बहिरागत होने तथा  उसके अतीत और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में अनिभिज्ञता के कारण उसके प्रति विश्वास का संकट बना रहता है और सम्बंधित परिवार एक अचीन्हे असुरक्षा-बोध से ग्रस्त रहता है |यह बिंदु भी यहाँ महत्वपूर्ण है |
                                                        वरहिया जैन समाज के मठाधीश जिन्हें इस विषय में ठोस पहल करनी चाहिए वे इस गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न पर भीष्म की तरह किंकर्तव्यविमूढ़ और मौन हैं |शायद उनकी निष्ठा समाज के प्रभावशाली वर्ग के हितसाधन से जुड़ी है |गरीब लोगों के सही और अच्छे कामों में अक्सर खोट ढूढ़ने वाले लोग जब अमीरजादों के गलत कामों को सही ठहराने के लिए उनके पक्ष में एकजुट होकर बेढब तर्क गढ़ते नज़र आते हैं तो दुःख तो होता है लेकिन हैरानी बिल्कुल नहीं होती |
                                                         इस समस्या को हल्के ढंग से लेने से इसके विकराल रूप धारण करने की आशंका है |यह एक बड़े आसन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संकट की दस्तक है |यदि इस समस्या के समाधान की दिशा में समय रहते गंभीर और ठोस पहल नहीं की गई तो इससे समूचे समुदाय का सामाजिक तानाबाना प्रभावित होगा |हम सभी को इस दिशा में सचेत होकर प्रयास करने की जरुरत है |

वरहिया जैन समाज के गौरव :पं. छोटेलाल वरैया

वरहिया जैन समाज की विद्वत परंपरा में पंडितवर्य गोपालदास जी वरैया के पश्चात् पं.छोटेलाल जी वरैया का नामोल्लेख आता है |समूचे मालवांचल में समादृत और उज्जैन के शीर्ष जैन विद्वानों में सुमेरु तुल्य पंडित छोटेलाल जी वरैया का जन्म भाद्रपद कृष्णा 5 संवत 1965 में ग्राम आमोल जिला शिवपुरी में हुआ था |आपके पिता का नाम श्री मोतीलाल जी वरहिया व माता का नाम श्रीमती सुन्दरबाई था |आपके पिता श्री मोतीलाल जी वरहिया अत्यंत सरलचित्त व्यक्ति थे |आप चौधरी गौत्र के रत्न हैं |किशोरावस्था से ही आप आजीविका के लिए परिश्रम करने में जुट गए |संवत 1982 में श्रीमती पुनियाबाई के साथ  आपका विवाह हुआ |अपनी जीवनसंगिनी से आपको 2 संतानें  प्राप्त हुईं  किन्तु क्रूर काल ने आपकी दोनों संतानों जिनमें एक पुत्री व एक पुत्र था ,आप से छीन लिया | इसके पश्चात् संवत 1998 में आपकी धर्मपत्नी का भी  स्वर्गवास हो गया ||इस दारुण वियोग से आपका ह्रदय विदीर्ण हो गया |
                       बाल्यावस्था से ही प्रतिकूलताओं से संघर्ष कर बड़े हुए युवा छोटेलाल ने इस विषम परिस्थिति में भी अपने संतुलन को डिगने न दिया और अपने मन के इस  सूनेपन को समाजसेवा ,सत्संग और साहित्य सृजन से भरना शुरू कर दिया और यही उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़-बिंदु (टर्निंग प्वाइंट )सिद्ध हुआ |
                      काव्य के पठन-पाठन में बचपन से ही आपकी गहरी रूचि रही |पांडित्य विधि की    शिक्षा प्राप्त कर आपने अनेक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराये जिसमें पंचकल्याणक जैसे विराट अनुष्ठान भी शामिल हैं किन्तु आपने पांडित्य कर्म को कभी अपनी आजीविका नहीं बनाया और अपनी इन सेवाओं के लिए मार्ग व्यय के अतिरिक्त कोई धन स्वीकार नहीं किया |
                     आप अनेक सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे हैं जिनमें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा अजमेर,सोनागिर सिद्धक्षेत्र कमेटी ,भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद् इत्यादि उल्लेखनीय हैं | आप संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे |आपने लगभग 45 ग्रन्थ और सौ से अधिक आलेख लिखे हैं जो आपकी विचक्षणता का जीवन्त प्रमाण हैं |आपकी रचनाएँ भारतवर्ष की सभी प्रमुख जैन पत्र पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं हैं |आपके कई ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं |गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं पर आपका समान अधिकार रहा है |आपकी पुस्तकों का समाज में धर्म प्रचारार्थ निशुल्क वितरण हुआ जिससे अखिल जैन समाज में आपको अत्यधिक ख्याति और बहुमान प्राप्त हुआ |आपने अपने संचित द्रव्य का सदुपयोग करते हुए अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीर जी में शांतिनगर स्थित जिनालय श्रृंखला में एक जिन- मंदिर का निर्माण कराया और वेदी प्रतिष्ठा कराई जो अत्यंत मनोज्ञ और भव्य है |
                         आपकी अप्रतिम सेवाओं के लिए जैन समाज द्वारा आपको 'विनोद-रत्न','व्याख्यान भूषण','वाणी भूषण','धर्मालंकार','समाज रत्न' आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित कर बहुमान प्रदान किया गया |हमारी स्मृतियों में जीवित जैन दर्शन के गहन अध्येता पंडित प्रवर छोटेलाल जी वरैया सही अर्थों में वरहिया जैन  समाज के गौरव हैं |

                                   

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

वरहिया जैन समाज के गौरव : पं.मोहनलाल जैन

पंडित मोहन लाल जैन ,जो पं. मिहीलाल जैन के नाम से भी ख्यात रहे हैं - का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी वि.संवत 1976 में ग्राम आमोल, जिला शिवपुरी में हुआ |आपके पिता श्री गंगाराम जी वरहिया अत्यंत विनम्र और सरल स्वभावी व्यक्ति थे |
                                            आपने जैन धर्म का अध्ययन मगरौनी में पंडित कामता प्रसाद जी शास्त्री बनारस वालों के सानिध्य में रह कर किया |आप अत्यंत कुशाग्र बुद्धि थे और सहजता से गूढ़ विषयों को हृदयंगम कर लेते थे |आपकी प्रेरणा से ही मगरौनी में प्रथम जैन पाठशाला की स्थापना हुई |बचपन से ही अध्यात्म के प्रति आपके मन में गहरी रूचि रही और अंततः वह उनके जीवन का स्थायी भाव बन गई |संगीत के प्रति भी किशोरावस्था से ही आपके मन में गहरा अनुराग रहा और जो आजीवन अक्षुण्ण बना रहा |
                                                                                                                                  आपने मोक्षशास्त्र ,रत्नकरंड श्रावकाचार ,द्रव्यसंग्रह ,छहढाला  प्रभृति अनेक जैन ग्रंथों का अध्ययन-पारायण किया और शोलापुर (महाराष्ट्र )से उनकी परीक्षा उत्तीर्ण की |आपकी व्याख्यान शैली अत्यंत सुबोध और हृदयग्राही थी |आप गूढ़ से गूढ़ विषयों को सरलता से प्रस्तुत कर हस्तामलकवत स्पष्ट कर देते थे |
                                                                                                       आपका विवाह श्रीमती गौराबाई के साथ हुआ ,जो अत्यंत सुशील और धार्मिक स्वभाव की महिला थीं |जिनसे आपको दो पुत्र प्राप्त हुए |आपके जीवन का अधिकांश समय सत्संग में व्यतीत हुआ |आपने दर्जनों धार्मिक नाटक लिखे और उनका सफल मंचन कराया |आपके लिखे मौलिक भजन ,जिनकी आध्यात्मिक छटा दर्शनीय है-भी दर्जनों की संख्या में हैं |ये सभी रचनाएँ अप्रकाशित हैं ,जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है |
                                                                      आपका निधन 3 जून 1986 को मुरैना में हुआ |             

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

वरहिया जैन समाज की विभूति :रामजीत जैन (एड.)

वरहिया जैन समाज को एक स्वतन्त्र और मूल जैन जाति या संघटना सिद्ध कर उसे दिगंबर जैन समाज में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने और उसका इतिहास लिखने वाले श्री रामजीत जैन ,(एड.)का जन्म उ.प्र.के आगरा जिले के ग्राम-कुर्रा चित्तरपुर में 2 जनवरी 1923 में हुआ |आपके पिता श्री करणसिंह जैन उस क्षेत्र के एक प्रसिद्ध श्रेष्ठी और संस्कारी व्यक्ति थे |आपकी माता का नाम श्रीमती रौनाबाई था |आपकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्राम कुर्राचित्तरपुर में हुई तथा उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से प्राप्त की |धर्म और संस्कृति के अध्ययन में आपकी युवावस्था से ही रूचि रही |आपकी पहल पर ग्राम में सामाजिक विकास के अनेक कार्य हुए |विधि स्नातक बनने के बाद आपने ग्वालियर को स्थायी रूप से अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना और दानाओली में टकसाल वाली गली में निवास करने लगे |यहाँ ग्वालियर उच्च न्यायलय में आपने वकालत आरंभ की |अपनी सत्यनिष्ठा और धर्मप्रवणता के चलते आप एक सफल वकील तो न बन सके लेकिन एक ईमानदार,मृदुभाषी ,सरल स्वाभावी अधिवक्ता के रूप में आपकी ख्याति सदैव रही |
             आराधना पत्रिका के प्रधान संपादक व श्रमसाधना पत्रिका के संपादक के रूप में आपने अपनी रचनात्मकता की गहरी छाप छोड़ी |आपकी अनेक कृतियाँ और दर्जनों फुटकर आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए ,जो आपकी सृजन क्षमता का जीवन्त प्रमाण हैं |गोपाचल क्षेत्र को सुप्रतिष्ठ केवली का निर्वाण क्षेत्र प्रमाणित करने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त है ,जिसे व्यापक मान्यता प्राप्त हुई है |
    जैन इतिहासकार के रूप में भी आपकी विपुल ख्याति है |वरहिया जैन समाज का इतिहास "वरहियान्वय" ,जैसवाल जैन समाज का इतिहास ,खरौआ जैन समाज का इतिहास ,विजयवर्गीय जैन इतिहास ,गोलालारे जैन जाति का इतिहास ,बुढेलवाल जैन समाज का इतिहास आपके कीर्ति के गौरव स्तम्भ हैं |अन्य कृतियों में गोपाचल पूजांजलि ,ग्वालियर गौरव,गोपाचल सिद्धक्षेत्र ,सोनागिर वैभव ,गिरनार महात्म्य ,अतिशय क्षेत्र बजरंगगढ़ ,अतिशय क्षेत्र सिहोनियां ,तीर्थक्षेत्र मथुरा ,तीर्थक्षेत्र कम्पिला जी,हस्तिनापुर आख्यान ,पावनक्षेत्र शौरिपुर बटेश्वर विशेष उल्लेखनीय हैं |इस अनूठे और मौलिक कृतित्व के लिए आपको अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं |समूचे दिगंबर जैन समाज में आपकी ख्याति और बहुमान है |आपकी इहलीला 3 जुलाई 2005 में समाप्त हुई |अपने कृतित्व के माध्यम से इस नश्वर संसार में आपकी स्मृति आज जीवित है ||आप सही अर्थों में वरहिया जैन समाज के रत्न हैं, जिन पर समूचा समाज अपने को गौरवान्वित अनुभव करता है |