सोमवार, 31 जुलाई 2023

बदलते सामाजिक मूल्य


 वक्त तेजी से बदल रहा है। लोगों की सोच बदल रही है और यह बदलाव कई मायनों में सकारात्मक भी है और कभी कभी इसकी वजह से अप्रत्याशित और अवांछित स्थिति भी पैदा हो जाती है। सकारात्मक इस अर्थ में है कि लोग पहले की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक हुए हैं। पहले परिवार के मुखिया की राय ही हर मामले में बाध्यकारी आदेश हुआ करती थी लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में समूचे परिवार विशेष रूप से पत्नी और बच्चों की राय यानी बहुमत की राय कई बार निर्णायक साबित होती है।परिवार का मुखिया उनसे मतैक्य न होने के बावजूद परिवार की एकता बनाए रखने और अंतर्कलह से बचने के लिए परिवारजनों की राय के अनुरूप निर्णय लेने के लिए विवश होता हैं।कई बार ऐसे निर्णय सही भी होते हैं और अनेक बार गलत भी साबित हुए हैं।लेकिन जब हम समाज को अनदेखा कर सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचते हुए कोई ऐसा निर्णय लेते हैं जो सामाजिक मानकों पर खरा नहीं उतरता या स्थापित परंपराओं को क्षति पहुंचाता है तो उसकी प्रतिक्रिया की आंच में कई बार सामाजिक रिश्ते पुनर्परिभाषित होने और नये सामाजिक ध्रुवीकरण बनने शुरू हो जाते हैं। प्रभावशाली लोगों को ऐसी प्रतिक्रियाओं से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे सिर्फ गाहे-बगाहे ही चर्चा के केंद्र में रहते हैं। उनका मुखर विरोध करने का साहस आम लोगों में नहीं है, यह बात वे भली-भांति जानते हैं। सामाजिक परंपराओं का भंजन सबसे ज्यादा समाज के प्रभावशाली लोगों ने किया है और उन्हें ही समाज में सबसे ज्यादा बहुमान प्राप्त है।समय के साथ सामाजिक मूल्य बदलते हैं,यह एक सामान्य सत्य है।अतीत में समाज में प्रचलित बीसा,दस्सा,पांचा का वर्गीकरण आज पूरी तरह कालबाह्य और अमान्य हो चुका है। कभी पाप माने जाने वाले विधवा विवाह को आज पूरी तरह कानूनी और सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है। अंतर्जातीय शादियां भी इस सिलसिले की एक अगली कड़ी है। उच्च शिक्षित लोगों की महत्वाकांक्षा और च्वाइस और महानगरीय जीवन मूल्य इसमें सबसे बड़ा कारक हैं। फिर भी लोग अंतर्जातीय शादियों के डर से न तो उच्च शिक्षा से विमुख हो सकते और न महानगरों में जाॅब से तौबा कर सकते हैं। निश्चित रूप से यहां संतुलन साधना सबसे कठिन काम है। शादियों के मामले में निर्विवाद रूप से प्राथमिकता तो स्वजाति ही होना चाहिए लेकिन इसके बावजूद समाज में अंतर्जातीय विवाह की प्रछन्न स्वीकार्यता बन गई है। ऐसे मामलों में एक-दूसरे पर छिछले आरोप-प्रत्यारोप और समाज से बहिष्कृत करने के बेतुके सुझाव इस समस्या का समाधान नहीं है। बल्कि इन विषयों पर विमर्श करने के लिए बहुत संवेदनशीलता की आवश्यकता है। फिर भी किसी भी मामले में समाज में बड़े, छोटे यानी अमीर,गरीब सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।एक को सराहना और दूसरे को प्रताड़ना स्वीकार्य नहीं है।