बुधवार, 9 नवंबर 2022

श्रीमान प्यारेलाल जी वरैया 'लाल'


 श्री प्यारेलाल जी वरैया (दाऊ गोत्रीय)श्रीमान चिरोंजी लाल जी वरैया और श्रीमती खुशयाली देवी के आंगन की वह किलकारी हैं जिसने अपने माता पिता के आंगन को बालसुलभ कौतुक के आह्लाद से भर दिया । आपका जन्म विक्रम संवत् 1960 में श्रावण मास में करहिया के पास स्थित रायपुर ग्राम में हुआ था।आपके पिता श्री चिरोंजी लाल जी तत्समय रायपुर ग्राम में पटवारी के रूप में पदस्थ थे।आपकी माताजी  श्रीमती खुशयाली देवी , बदेकेवास जिला आगरा निवासी श्रीमान सूरजभान जी की बहिन हैं। प्यारेलाल जी के दो सहोदर भाई और एक बहिन भी थी। छोटे भाई वृजलाल जी की मृत्यु तो उनके बाल्यकाल में ही हो गई थी और बड़े भाई पन्नालाल जी भी लश्कर आने के कुछ समय उपरांत अपनी इकलौती पुत्री बाओबाई को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए थे।आपकी बहिन श्रीमती आनंदी बाई का विवाह करहिया ग्राम में आरोन निवासी श्री भगवान लाल जी के साथ हुआ था।
                आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे।आपकी प्रारंभिक शिक्षा पंडित गोपाल दास जी वरैया के सानिध्य में मुरैना विद्यालय में हुई, जहां आपने छठवीं तक अध्ययन किया।इस कारण आपके विचारों पर पंडित गोपाल दास जी वरैया का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। आपने शिक्षार्जन के दौरान अंग्रेजी का भी कार्य साधक ज्ञान प्राप्त किया।
                  श्री प्यारेलाल जी वरैया दो बार परिणय सूत्र में बंधे।उनका पहला विवाह सिरसा (ग्वा.) निवासी श्रीमान झींगुरमल जी की पुत्री व श्रीमान भगवानलाल, जौहरीलाल जी की बहिन के साथ हुआ था और दूसरा विवाह करहिया निवासी श्रीमान भीखाराम जी की पुत्री व श्री मंगलचंद जी पलैया जो दानाओली लश्कर में निवास करते थे, की बहिन श्रीमती इमरती बाई के साथ हुआ था।
                 पिता श्री चिरोंजी लाल जी के रायपुर ग्राम से पनिहार स्थानांतरण होने पर आप भी तीन-चार साल पनिहार में रहे। इसके पश्चात विक्रम संवत् 1976 में आप ग्वालियर आ गए  और आढ़त का काम प्रारंभ किया।अध्यवसायी होने के कारण आपने अपने व्यवसाय में काफी ख्याति अर्जित की। विक्रम संवत् 2000 में आपके पिताजी के स्वर्गवास के बाद पूरी गृहस्थी का भार आपके कंधों पर आ गया।
                    धर्म के प्रति आपकी रुचि बाल्यकाल से ही रही।आप बिना देवदर्शन के भोजन ग्रहण नहीं करते थे। फिर भी जीवन के पूर्वार्द्ध में आपने व्रतादि का पालन नहीं किया था। लेकिन सुयोगवश विक्रम संवत् 2010 में सर्राफा लश्कर स्थित बड़े जैन मंदिर में ग्वालियर के पंडित धन्नालाल जी की प्रवचन श्रृंखला ने जिसे वे पूरे मनोयोग से श्रवण करते थे,मानो उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उन्हें आत्मजागृति की ऐसी स्वस्फूर्त  प्रेरणा मिली ;जिसके कारण व्रतादि के पालन की भावना प्रबल हुई और उन्होंने प्रथम प्रोषधोपवास किया।त्रैकालिक सामयिक का नियम भी ग्रहण किया। ऊर्ध्वमुखी चेतना ने उन्हें गृहस्थ वैरागी बना दिया। आजीविका का भार अपने पुत्रों पर छोड़कर आप शनै:शनै: आत्मोन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते रहे।उनका अधिकांश समय शास्त्रों के अध्ययन और पारायण में व्यतीत होने लगा। आध्यात्मिक साहित्य के चिंतन मनन के साथ ही साहित्य के प्रणयन में भी उनकी प्रवृत्ति हुई।आप 'लाल' उपनाम से साहित्य रचना करते थे।आपकी रचनाएं पद्यात्मक और छंदोबद्ध हैं और जनमानस में काफी लोकप्रिय रहीं।आपकी रचनाओं की जो सूची प्राप्त हुई है उसमें 22 रचनाओं का उल्लेख है।आपके वंशज संप्रति रोशनीघर लश्कर में निवास करते हैं। उनकी रचनाएं निम्नलिखित अनुसार हैं- 
          1. अध्यात्म भावना, 2. अध्यात्म चालीसा, 3. अध्यात्म बहत्तरी, 4.भेदज्ञान पच्चीसा, 5 दर्शन पच्चीसा 6. द्वादसानुप्रेक्षा, 7. बारह भावना, 8. तीन की महिमा एवं प्रश्नोत्तर, 9. जैन धर्म शतक, 10. चौबीस ठाणा के उत्तर भेद, 11. दान कथा, 12, सुख पाने के सम्यक उपाय 13. सार समुच्चय पद्यानुवाद, 14. रयणसार पद्यानुवाद, 15. आत्म प्रबोध ग्रन्थ, 16. अध्यात्म भक्ति भजन भावना, 17. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 18. अध्यात्म प्रश्नोत्तरी , 19. शान्ति पथ दर्शक वरहिया विलास भाग-1 व 2, 20 कर्ता कौन 21. जीव की 47 शक्तियां, 22. आत्मार्थी जीवों की भावनाएं।