शिवपुरी जिले का नरवर गढ़ |
जिसका प्राचीन दुर्ग सुदृढ़ ||
संस्थापक जिसके राजा नल |
जिनकी फैली है कीर्ति विमल ||
नृप श्रेष्ठ निषध के एकमेव |
वनराज सिंह है ज्यों स्वयमेव ||
जिनकी पौराणिक गाथाएं |
जनमानस में गायीं जाएँ ||
उनके वंशज श्री सूर्यसेन ,
गंभीर व्याधि से ग्रस्त हुए |
शुद्धनपुर नगरी में रहकर ,
स्नान मात्र से स्वस्थ हुए ||
उनके सुत वीरमचन्द्र देव का ,
हिंसा से मन क्लान्त हुआ |
अपनाकर जैन धर्म का पथ,
उनका भटका मन शांत हुआ ||
उनके ही सतत प्रयासों से,
सोनागिर में चंदाप्रभु के ;
मंदिर का शुभ निर्माण हुआ |
सारा जीवन ऋषि तुल्य जिया,
अंततः वरारगढ़ में आकर ;
उनका फिर महाप्रयाण हुआ ||
श्री वीरमचन्द्र देव से ही ,
यह जाति 'वरहिया ' ख्यात हुई |
'हैं श्रेष्ठ ह्रदय वाले जो जन' ,
इस भांति जगत विख्यात हुई ||
हम सभी 'वरहिया जैन' ,
उन्हीं की धर्मनिष्ठ संतानें हैं |
संकल्प पूर्वजों के पावन ,
मन में अपने जो ठाने हैं ||