हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता |
जैन जगत में धार्मिक शिक्षा पथ के नवनिर्माता ||
तुम अज्ञान अमा हर लाये,धर्म ज्ञान की ऊषा |
जैन भारती को दी तुमने मनोहारिणी भूषा ||
ओ ज्ञानार्थी शरण तुम्हारी पहुँच बना अनुगामी |
हुआ वहीँ कुछ दिवसों में ही,ज्ञान कोष का स्वामी ||
धन्य शिष्य वे जिन्हें मिले गुरु तुमसे विद्यादाता |
हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता ||
कर शास्त्रार्थ विजय फहरायी तुमने जैन पताका |
पड़ा प्रभाव विरोधी दल पर भी तब वाद कला का ||
क्योंकि नहीं थे तुम जैनागम के कोरे श्रद्धानी |
उसके गूढ़ रहस्यों के भी अपितु रहे हो ज्ञानी ||
अतः गौरवान्वित है तुमसे यह जिनवाणी माता |
हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता ||
आज स्वयं हो रहा तुम्हारे पद-युग पर नत माथा |
कविवाणी गा रही स्वयं ही तब उज्वल यशगाथा ||
क्योंकि मुरैना का विद्यालय दिया तुम्हीने दानी |
जो कि आज भी तब उपकारों की कह रहा कहानी ||
हम व्याख्यान करें क्या गुण का हे अनुपम व्याख्याता |
हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता ||
------ रचयिता श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश',(नागौद)
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