शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

गुरु गोपालदास -महिमा 2


हे इन धूल भरे हीरों के  सुख सौभाग्य विधाता |
जैन जगत में धार्मिक शिक्षा पथ के नवनिर्माता ||

तुम अज्ञान अमा हर लाये,धर्म ज्ञान की ऊषा |
जैन भारती को दी तुमने मनोहारिणी  भूषा ||
ओ ज्ञानार्थी शरण तुम्हारी पहुँच बना अनुगामी |
हुआ वहीँ कुछ दिवसों में ही,ज्ञान कोष का स्वामी ||

धन्य शिष्य वे जिन्हें मिले गुरु तुमसे विद्यादाता |
हे इन धूल भरे हीरों के सुख सौभाग्य विधाता ||

कर शास्त्रार्थ विजय फहरायी तुमने जैन पताका |
पड़ा प्रभाव विरोधी दल पर भी तब वाद कला का ||
क्योंकि  नहीं थे तुम  जैनागम के कोरे  श्रद्धानी |
उसके  गूढ़  रहस्यों के भी अपितु रहे हो  ज्ञानी ||

अतः गौरवान्वित है  तुमसे यह जिनवाणी माता |
हे इन धूल भरे  हीरों के सुख  सौभाग्य  विधाता ||

आज स्वयं हो रहा तुम्हारे पद-युग पर नत माथा |
कविवाणी गा रही स्वयं ही तब उज्वल यशगाथा ||
क्योंकि मुरैना का विद्यालय दिया तुम्हीने दानी |
जो कि आज भी तब उपकारों की कह रहा कहानी ||

हम व्याख्यान करें क्या गुण का हे अनुपम व्याख्याता |
हे  इन धूल भरे  हीरों के  सुख  सौभाग्य  विधाता  ||

                                ------   रचयिता श्री धन्यकुमार जैन 'सुधेश',(नागौद)


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