शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

जड़ता


 बरसों से बैठे हैं जो पालथी मारकर ,
उनका गुण संकीर्तन सारे जन करते हैं।


किसमें साहस,उनकी ओर उठाए उंगली,
नाम जीभ पर भी लाने भर से डरते हैं।।


जो छक आए हैं मधुरस उनके घर जाकर
वे समाज में उनका ही जप उच्चरते हैं।


 फिरते है जो मल्ल,शूरमा ताल ठोकते
वे भी उनसे आंख मिलाने से डरते हैं।


आएगा बदलाव भला फिर कैसे, बोलो
दशकों बीत चुके हैं अब तो आंखें खोलो।

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