मंगलवार, 2 जनवरी 2024

हमारा भवितव्य


 जिनकी महत्वाकांक्षा के डैने (पंख) बड़े हो गए हैं उन्हें उड़ने के लिए समाज का आंगन छोटा पड़ने लगा है। उन्हें उन्मुक्त उड़ान भरने के लिए अब और बड़ा आसमान चाहिए। इसलिए अब वरहिया समाज के लोग परवार,पल्लीवाल, खंडेलवाल इत्यादि समाज के लड़कों के साथ अपनी लड़कियों के रिश्ते करने की दिशा में बढ़ चले हैं। हालांकि सामान्यतः  प्रत्येक व्यक्ति  विवाह सम्बन्ध करने में सजातीय समाज को ही प्रमुखता देता है लेकिन जब अपनी समाज में उसे उपयुक्त लड़की नहीं मिलती है या किसी कुलीनतागत हीनता के कारण समाज में उसे मान्यता नहीं मिलती है तभी वह अन्य समाज की ओर उन्मुख होता हैं । चूंकि  लिंगानुपात बिगड़ने की वजह से सभी समाज लड़कियों की कमी की सर्वग्रासी समस्या से जूझ रहे हैं। इसलिए उन्हें अन्य समकक्ष समाज से लड़की स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है। लेकिन यहां यह बात विचारणीय और रेखांकित करने योग्य है कि वे आपकी लड़कियां तो स्वीकार कर रहे हैं लेकिन अपनी लड़कियां आपके यहां देने में उन्हें कोई रुचि नहीं है और वे आपको महत्व या वरीयता नहीं देते। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप उनकी प्राथमिकता सूची में ही नहीं हैं।अब यक्ष प्रश्न यह है कि  यदि समाज की पढ़ी-लिखी अधिकांश लड़कियां बाहर चली जाएंगी तो आपके विवाह योग्य लड़कों के लिए पहले से ही लड़कियों की कमी से जूझ रही वरहिया समाज में वधू के रूप में लड़कियों की सुलभता और घटेगी । इसके अलावा जब समकक्ष विजातीय समाज में आपकी पहल पर  जब कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया या रिस्पांस नहीं मिलेगा तो आप अपने विवाह योग्य लड़कों के लिए वधू की तलाश में क्या बिहार और उड़ीसा का रुख करेंगे। क्या अब हमारा भवितव्य यही है? क्या यह अधोपतन की स्थिति नहीं है ?

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